अर्थहीन है

आतिशबाजी और हुल्लडी खुशी

– डॉ. दीपक आचार्य

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पिछले कुछ वर्ष से खुशी जाहिर करने के मामले में हम जाने कितने उपायों का सहारा लेते रहे हैं। इनमें आजकल दो प्रकार के तरीके सर्वत्र  व्यापक हैं। एक तो आतिशबाजी और दूसरा हुल्लड़बाजी। हम छोटी-मोटी बात हो या सामूहिक उल्लास का कोई सा माध्यम, धड़ाधड़ दो बातें कर डालते हैं।

शोरगुल और हुल्लड़बाजी करने लगते हैं और हमें लगता है कि शोर मचाने से ही खुशी के आनंद को बहुगुणित किया जा  सकता है। इसी प्रकार हम लोग आतिशबाजी का सहारा लेने के आदी हो चुके हैं। आए दिन कोई न कोई खुशी का मौका हमारे सामने आता ही रहता है।

इसमें हम और कुछ करें न करें, हुल्लड़ और आतिशबाजी तत्काल कर ही डालते हैं। खुशी व्यक्त करने के तरीकों में ये दो ही ऎसे हैं जो सहज साध्य और सर्वत्र उपलब्ध हैं और इसका उपयोग आम से लेकर खास तक सभी किस्मों के लोग कर सकते हैं।

आजकल दूरदराज के गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों से लेकर सभी तरफ इन दो ही तरीकों के माध्यम से खुशी जाहिर की जाने लगी है। हम अपने किसी  भी कारण को लेकर खुशी जाहिर करते हैं तब हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी खुशी के कारण औरों को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न पहुंचे।

जबकि हुल्लड़ और आतिशबाजी दोनों ही ऎसे माध्यम हैं जिनकी वजह से प्रकृति और परिवेश दोनों दुष्प्रभावित होते हैं और इनसे सभी को किसी न किसी Image4प्रकार से कष्ट पहुँचता है। आतिशबाजी के कारण हमारे परिवेश में ध्वनि नियंत्रण सारी सीमाओं को लांघ जाती है और इससे कानों से लेकर सभी अंगों को क्षति पहुंचती ही है।

पशु और पक्षियों को भी घबराहट और भय के मारे त्रस्त होना पड़ता है और कई-कई बार तो उन स्थलोंं से पक्षियों को बेदखल होना पड़ता है जो सार्वजनिक स्थल हैं और बार-बार आतिशबाजी या शोरगुल होता रहता है। इस आतिशबाजी से निकलने वाली घातक किरणों को दुष्प्रभाव वायुमण्डल पर भी पड़ता है और जनजीवन पर भी।

कई बार सार्वजनिक स्थलों  और अस्पतालों के आस-पास भी तीव्र आतिशबाजी और शोरगुल के कारण मरीजों और बुजुर्गों को परेशानी होती है और इनके स्वास्थ्य पर खतरा भी मण्डराता रहता है। यही हालत शोरगुल करने वालों की है।

कई बार उन्मुक्त और उच्छृंखल युवाओं की मदमस्त टोलियां बाईकर्स के रूप में दौड़भाग करते हुए शोर मचाती रहती हैं, कई बार चौराहों, सर्कलों आदि पर हो हुल्लड़ होता रहता है और इस वजह से लोक शांति एवं परिवेशीय शांति पर दुष्प्रभाव पड़ता रहता है।

हमें गंभीरता के साथ यह सोचना चाहिए कि हमारे किसी उल्लास प्रकट करने के माध्यम की वजह से औरों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। कई बार शादी-ब्याह के अवसरों पर भी आतिशबाजी की जाती है। घर बसाने की बुनियाद के उल्लास में हम आतिशबाजी कर जश्न मनाते हैं मगर हम यह भूल जाते हैं कि अक्सर होने वाली इस आतिशबाजी की वजह से कई पक्षियों के घरों को हम उजाड़ दिया करते हैं और उन पखेरूओं का श्राप हमें किसी न किसी रूप में लगता ही है जो हमारे दाम्पत्य जीवन को अभिशप्त कर दिया करता है।

जीवन में खुशियां व्यक्त करने के कई और भी तरीके हैं और यों भी खुशी अन्तस का विषय है जो भीतरी आनंद से जुड़ा हुआ है।  खुशी सिर्फ अपने आप तक सीमित नहीं रखकर सभी में बाँटनी चाहिए तभी खुशी के अपने आनंद को बहुगुणित किया जा सकता है।

अपने क्षेत्र तथा आस-पास के जीव-जंतुआें को किसी न किसी प्रकार से दुःखी कर किसी भी प्रकार की खुशी की अभिव्यक्ति का कोई अर्थ नहीं है। पुरातन सामाजिक परंपराओं को उल्लास अभिव्यक्ति का जरिया बनाएं और यह प्रयास करें कि हमारी खुशी में सभी सहभागी हों, यहां तक कि आस-पास की प्रकृति और जीव-जंतु तक भी।

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