नयी पीढ़ी को मौका दें,

भरोसा रखें क्षमताओं पर


– डॉ. दीपक आचार्य

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समाज और देश का दुर्भाग्य है कि जो जहाँ है वहाँ हमेशा टिका रहना चाहता है और उसके जीवन का एकमात्र सर्वोपरि लक्ष्य यही रहता आया है कि वह हमेशा वर्तमान ही बना रहे। दिन-महीने-साल गुजरते चले जाएं, तारीख पर तारीख चढ़ती जाए, कैलेण्डर और पंचांग बदलते चले जाएँ, साल दर साल हैप्पी बर्थ डे मनाते हुए हम आयु के चढ़ावों को पार करते हुए मौत की घाटियों के करीब पहुंच जाएं, चेहरों की झुर्रियां जाने कितनी सारी रेखाओं के साथ जात-जात की आकृतियां लेने लगें, रजतवर्णी केशों की चाँदनी अंधेरों में भी अपनी चमक से डराने का भरपूर सामथ्र्य पैदा कर ले, काल अपना काम करता रहे, आगे बढ़ता रहे मगर हम हैं कि कभी यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि हम भूत हो चुकने की स्थिति में आ चुके हैं।

लोग भी हमारे भूत होने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं, और हम हैं कि अपने आपको हर क्षण वर्तमान बनाए रखने के फेर में वो सब कुछ करने को तैयार रहते हैं जो हमें वर्तमान बनाए रखने में मददगार होता है।

हममें से काफी लोग ऎसे हैं जिनके जीवन का अहम लक्ष्य वर्तमान बने रहना ही हो गया है। इसी वर्तमान की चाशनी में हमेशा तरबतर रहने के आदी हो चुके लोगों की वजह से हर रास्तों पर असामयिक एवं परिपक्व हो चुके वर्तमानों का जबर्दस्त जाम लगा हुआ है।

वर्तमान बने हुए हम सभी लोगों को सबसे बड़ा भ्रम यही हो गया है कि 529880_411791348860393_900858818_nहम ही हैं जिनकी बदौलत दुनिया चल रही है, हम न हों तो इस दुनिया का क्या होगा? यही सब सोचते हुए, चिंता करते हुए हमारे पूर्वजों की जानें कितनी खेपें अपने आपके हमेशा वर्तमान होने के भ्रमों में जीते हुए ऊपर चली गई और भूत हो गई।

हमारी स्थिति यह हो गई है कि हम अपने आपको वर्तमान बनाए रखने के फेर में न नई पीढ़ी को रास्ता दे रहे हैं, न उन्हें स्वीकार करने की उदारता ही हममें बची है। हम सभी को यह भ्रम है कि हम ही हैं जो ज्ञान, शिक्षा-दीक्षा और अनुभवों, हुनरों में महारथ हासिल किए हुए हैं और हम नहीं रहेंगे तो सृष्टि का संचालन कैसे हो पाएगा?

समाज और देश की वर्तमान हालातों में हमने युवाओं, नई पीढ़ी को कमजोर समझ रखा है और यह मान लिया है कि नई पीढ़ी ज्ञान, हुनर और अनुभवों के मामले में हमसे पीछे है। यही सोच वर्तमान का सबसे बड़ा रोड़ा है।

नई पीढ़ी की क्षमताओं को जानने-समझने और लाभ लेने का मौका तब मिलेगा जब हम सारे वर्तमान स्वेच्छा से समाज व देश हित में त्याग को स्वीकारें और नई पीढ़ी को काम करने, अपने फन आजमाने तथा कुछ कर दिखाने के लिए अवसर प्रदान करें, उनकी राह रोकने की बजाय उन्हें नए-नए अवसरों से परिचित कराएं और उन्हें अपनी क्षमताएं दिखाने के लिए प्रे्ररित करें।

लेकिन हर वर्तमान को भविष्य से हमेशा खतरा बना रहता है कि भविष्य सुनहरा दिखाई देने लगेगा तो वर्तमान अपने आप भूत होता चला जाएगा और जो भूत हो जाता है वह मुख्य धारा से हटकर या तो उदासीन अवस्था प्राप्त कर लेता है अथवा मार्गदर्शक बनकर सामने होता है।

हर वर्तमान को चाहिए कि वह समय पूरा हो जाने के बाद अपने आप दूसरों को मौका देने के लिए आगे आए और स्वयं अपने अनुभवों व ज्ञान का लाभ देकर नई पीढ़ी को मार्गदर्शन देकर आगे बढ़ाए न कि खुद ही खुद हर जगह कुण्डली मारकर बैठा रहे।

वर्तमान स्वेच्छा से भूत नहीं होगा  तो काल अपने आप एक समय बाद भूत बना देगा लेकिन तब तक के लिए भविष्य के सुनहरे रंग अड़ियल वर्तमानोें की वजह से दूर ही रहेंगे। वर्तमान को हक है कि वर्तमान का इस्तेमाल अपने लिए करे, लेकिन साथ में उसे इस सत्य को भी अंगीकार करना होगा कि हमेशा कोई वर्तमान बना हुआ नहीं रह सकता, उसे कभी न कभी भूत बनना ही होगा। स्वेच्छा से करे तो मोक्षगामी हो सकता है, और विवशता से हो जो भूतयोनि को भी प्राप्त कर सकता है।

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