हर तरफ पसरे हैं

अजीबोगरीब क्लोन

– डॉ. दीपक आचार्य

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विज्ञान के युग में हर विषय कहीं न कहीं विज्ञान पर जाकर ही अटक जाता है। वैज्ञानिक युग के आविष्कारों में इंसान की प्रतिकृति का सपना हमारे वैज्ञानिक जाने कब पूरा कर पाएं मगर अपने यहाँ ऎसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो किसी न किसी के क्लोन कहे जाते हों।

कुछ मामलों में इन क्लोन्स का प्राकट्य संदिग्ध परिस्थितियों में हुआ माना जा सकता है और उनका व्यवहार तथा कामकाज की शैली भी लगभग समान ही हुआ करती है। इसे दुर्योग कहें या संयोग, मगर सच यही है कि कई सारे इलाकों में एक ही इंसान की तरह के दूसरे लोग भी मिल ही जाते हैं जिनकी कद-काठी या व्यवहार में उन्नीस-बीस समानता होती ही है।

इन लोगों को छोड़ भी दिया जाए तो क्लोन्स की एक बहुसंख्य किस्म और भी है जो कभी मोयलों की तरह, कभी जुगनूओं की तरह और कभी बरसाती फड़कों की तरह विचरण करती है। ऎसे-ऎसे लोग अपने इलाकों में छा जाते हैं जिन्हें देख कर लगता है कि जैसे ये ही वे लोग हैं जो बड़े-बड़े लोगों के प्रतिरूप यानि की क्लोन बनकर समाज और क्षेत्र की छाती पर मूंग दल रहे हैं।

ये क्लोन हर फील्ड में फन आजमाते हैं। इनके लिए अपना कोई समय या फील्ड नहीं होता। ये सर्वत्र पाए जाते हैं और सदैव भी। कुछ क्लोन सभी के क्लोन बन जाया करते हैं जबकि कुछ अपना समय आने पर।  खूब सारे क्लोन ऎसे होते हैं जिनमें अपना न कोई ज्ञान होता है, न कोई प्रतिभा या अनुभव, बस जिनके साथ रहते हैं, उनके साथ रह रहकर उनके गुणों को अपना लेते हैं फिर उनका नाम ले लेकर अपने उल्लू सीधे करते रहते हैंं।

यह इन क्लोन्स की ही तासीर है कि ये जो कुछ करते हैं उसकी भनक वे भी नहीं पा सकते जिनके ये कहे जाते हैं। बल्कि ‘राम से बड़ा राम का नाम’ की तर्ज पर अपने आकाओं के नाम लेकर ही सब कुछ कर गुजरते हैं। ये क्लोन अपने आकाओं के इतने करीब चिपके हुए रहते हैं कि आम लोग क्लोन और आकाओं में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते, न ही कोई फर्क। क्लोन की हर आज्ञा और मंशा को वे आकाओं की इच्छा मानकर ही सम्मान देते हैं और काम कर दिया करते हैं जो वांछित-अपेक्षित होते हैं।

जात-जात के क्लोन धरती पर इस कदर छाये हुए हैं कि लगता है कि जैसे क्लोन ही हम पर राज कर रहे हों। क्लोन्स का अपना कोई एक क्षेत्र नहीं होता,वे सार्वजनीन और संप्रभु हैं, चाहे जो कह सकते हैं, चाहे जो कर या करा सकते हैं और मनचाही जगहों पर बिना किसी लाइसेंस के विचरण कर सकने को स्वच्छंद हैंं।

हमारे आस-पास जितने सारे बड़े लोग हैं उनके बारे में पड़ताल की जाए तो उनमें से हर किसी का कोई न कोई क्लोन होता ही है जो उनका नाम लेकर काम निकलवाने में माहिर होता है। जितने बड़े आका, उतनी ज्यादा संख्या में क्लोन। क्लोन का संसार हर तरफ पसरा हुआ है। जिनमें कमाने की कोई कुव्वत नहीं है, समाज में नाकारा और नालायक हैं, पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी साबित हुए हों, गोरखधंधों में रमे हुए हों तथा अपने बूते जिन्दगी गुजारने का कोई सामथ्र्य न हो,वे सारे के सारे घांघरू (नाकारा और नुगरे, आलसी, कामचोर) लोग किसी न किसी के क्लोन बनकर कमा खा रहे हैं।

क्लोन संप्रदाय का भी अपना अलग ही वजूद है। क्लोन्स के भी अपने क्लोन्स होते हैं जो नेटवर्क बनाते हुए क्लोन संप्रदाय को धन्य और अमर बनाए रखने की हरचंद कोशिश में रमे रहते हैंं। खूब सारे क्लोन अपने आकाओं से भी आगे बढ़ जाते हैं और उन्नत दर्जे के दलाल, भांजगड़िया या बिचौलियों के रूप में नाम कमा जाते हैं।

कई सारे क्लोन सिर्फ मुफत की यश-प्रतिष्ठा कमाने और सुनहरे बाड़ों में घूमते रहने का लाइसेंस भर पाने के लिए बेसब्र रहते हैं और दूसरों पर अपने आकाओं की धौंस दिखा कर रौब झाड़ते हैं। ये क्लोन काम तो दूसरों से करवाते हैं, लेकिन आकाओं की नज़रों में सब कुछ अपना ही किया कराया बताकर शोहरत लूटने में माहिर होते हैं।

हम सभी लोग किसम-किसम के क्लोन्स से घिरे हुए हैं। ये क्लोन न होते तो दुनिया इतनी आगे नहीं बढ़ पाती जितनी आज बढ़ चुकी है। आका भी खुश, और क्लोन भी मस्त। अंधों और लंगड़ों का यह नापाक मेल जाने कब तक चलता रहेगा यों ही।

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