किसी से तुलना न करें

यह विधाता का अपमान है

– डॉ. दीपक आचार्य

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विधाता ने सृष्टि में हर व्यक्ति और क्षेत्र से लेकर जड़-चेतन सभी कुछ अपने आप में अन्यतम बनाया है। यह उसी की कारीगरी का कमाल है कि दुनिया भर में कोई किसी का मेल नहीं है चाहे वह इंसान हो, पशु-पक्षी हो या फिर कोई सा स्थल।

हर जीव और जगत को परमात्मा ने ऎसा बनाया है कि हर इकाई अपने आप में बेजोड़ है। पर हम हैं कि उस परम सत्ता की बनायी सृष्टि के हर पहलू को किसी न किसी से तुलना करने लग जाते हैं। चाहे वह इंसान हो या कोई सा भौगोलिक क्षेत्र अथवा कर्म। जबकि यह सारे के सारे ऎसे हैं जिनकी कभी तुलना नहीं की जा सकती।god

तुलना करते वक्त हम अपने आपको दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मूल्यांकनकत्र्ता तो समझते हैं लेकिन ऎसा होता नहीं है। हमारी अपनी सीमाएं हैं। ये सीमाएं भौगोलिक, चेतन-अवचेतन, बौद्धिक और शारीरिक सामथ्र्य के मामले में संकीर्णताओं से जुड़ी हुई होती हैं।

हम तुलना करते वक्त हमारे पास उपलब्ध ज्ञान या हमारे द्वारा देखी, सुनी और पढ़ी गई बातों के आधार पर ही आकलन करते हैं और ऎसे में हमारा किसी विषय या वस्तु अथवा व्यक्ति से संबंधित तुलना करना पूरी तरह बेमानी है। ऎसा करते हुए हम वर्तमान के शाश्वत सत्य को नकारते हैं और उस व्यक्ति, स्थान,वस्तु या विषय की अवमानना करते हैं जो वर्तमान भी है और अपनी तरह का अन्यतम भी।

इस प्रकार की तुलना वे ही लोग करते हैं जो मुक्त विचारों और सत्य के पक्षधर होने की बजाय किसी न किसी दकियानूसी व पोंगापंथी दायरों में नज़रबंद होते हैं और उससे आगे सोचने की उन्हें न फुर्सत है, न उनका इतना सामथ्र्य ही है।

सृष्टि के हर जीव और कर्म, वस्तु और स्थान को वैश्विक नज़रिये से और स्रष्टा के प्रति आदर भाव से देखें। इस प्रकार की हमारी दृष्टि का विकास होने पर न हम किसी से किसी की तुलना का दुस्साहस करेंगे और न ही हमें तुलना की संकीर्णताओं से भरे रास्तों की ओर लौटना होगा।

तुलना करने का सीधा सा अर्थ यही है कि हम उस व्यक्ति, स्थान या वस्तु के प्रति द्वितीयक भाव रखते हैं और जिससे तुलना की जा रही है वह हमारे अवचेतन में कब्र बनाए हुए भी जिंदा है। सृष्टि की हर इकाई अपने आप में अन्यतम है और यह ईश्वरीय सृष्टि का ही कमाल है कि दुनिया में किसी से किसी की तुलना नहीं की जा सकती, न हमें तुलना का कोई अधिकार ही है।

जो अधिकार और सोच-विचार स्रष्टा के हैं, उन्हें छीनने का प्रयास न करें, बल्कि स्रष्टा के प्रति अन्यतम श्रद्धा और आदर का भाव रखते हुए सदैव इस विस्मय-संसार में रमण करने की कोशिश करें जिसमें सब कुछ अपने आप अलग-अलग और अन्यतम है।

अपने आस-पास के किसी व्यक्ति की किसी और इंसान से तुलना जब हम करते हैं तब सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि हम हमारे पास उपलब्ध इंसान की भी तोहीन कर रहे हैं और उस सर्वशक्तिमान की भी, जिसने दुनिया बनाई है। इससे हमारे पास के व्यक्तियों का अवमूल्यन और अपमान होता है।

यही स्थिति स्थान विशेष के बारे में है। कई लोग तीर्थों, धर्म क्षेत्रों, नदियों, महलों, परंपराओं से लेकर दुनिया के सुनहरे आयामों के बारे में तुलना करते हैं और अपने इलाकों में या अपने आस-पास के स्थलों को उनका प्रतिरूप या नमूना या लघु स्वरूप बताकर तुलना कर दिया करते हैं जबकि हम अपने आस-पास के स्थलों को थोड़ा गहराई से अध्ययन करें जो यह लगेगा कि ये स्थल और वस्तुएं तो उनसे भी इक्कीस ही हैं जिनसे हम तुलना करने का दुस्साहस करते रहे हैं।

इसलिए किसी की भी किसी से तुलना करने की मूर्खता और संकीर्ण मनोवृत्तियों को त्यागें तथा स्रष्टा का अपमान न करें। दुनिया में जो कुछ है वह अपने आप में अलग ही है और इसका न किसी से कोई मुकाबला है, न हो सकता है। आप हों या हम, या फिर अपने आस-पास के लोग, स्थल या और कुछ ….हम सभी अन्यतम और बेजोड़ हैं। जो यह सच्चे मन से स्वीकार लेता है, स्रष्टा उस पर प्रसन्न भाव से सदैव मुदित रहता है।

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