वो हर आदमी भिखारी है

जो माँगता है

– डॉ. दीपक आचार्य

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भिखारी से हम यही आशय रखते हैं कि जो सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर हाथ या झोली फैलाकर माँगने का आदी हो और जिसका गुजारा चलाने का एकमात्र सहारा भीख ही हो। भीख न मिले तो उसका जीना मुश्किल हो जाए और जीवन संकट में पड़ जाए। अब भीख और भिखारी दोनों के मायने काफी हद तक बदल चुके हैं।  अब लोग जीने के लिए नहीं बल्कि संग्रह के लिए भीख माँगते हैं। कुछेक मजबूर लोगों को छोड़ दिया जाए तो आजकल भीख माँगना  अभिनय और फैशन  हो चला है।

भिखारियों की कई सारी किस्में पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। हमारे आस-पास भी भिखारियों के दर्शन होना आम बात है। वो जमाना चला गया जब जिन्दा रहने भर के लिए भीख माँगने की विवशता थी। उस समय लोगों को पेट भरने के लिए भीख की जरूरत हुआ करती थी। और कुछ न मिल पाने की स्थिति में जीवन पर संकट भी आ सकता था। आज ऎसी कोई परिस्थिति नहीं है। आदमी को जिन्दा रहने और रखने के लिए उतने तो प्रबन्ध सभी स्थानों पर हैं ही कि किसी को भूखों न मरना पड़े।  इन हालातों के बावजूद भीख माँगने की आखिर ऎसी कौनसी मजबूरी है कि हर तरफ भिखारी ही भिखारी नज़र आते हैं।

कोई सा क्षेत्र हो, भिखारियों का वजूद वहाँ हमेशा बना रहता है। भिखारियों में दो किस्मे हैं । एक वे हैं जो भीख माँगते हैं और उनका हुलिया भिखारियों का ही होता या दिखता है। दूसरी किस्म उन लोगों की है जो भिखारियों के लिबास में न होकर भी भिखारियों से कम नहीं हैं। एकबारगी तो भिखारियों को भी लज्जा या शर्म आ जाए, मगर भिखारियों की इस किस्म को कभी लज्जा का अनुभव नहीं होता।

सामान्यतः सिद्धान्त यही है कि जो व्यक्ति बिना पुरुषार्थ के माँगता रहता है या माँगने रहने का आदी है वह भिखारी है, चाहे वह भिखारियों जैसा दिखे या नहीं। ऎसे लोग शरीर से भले ही न दिखें मगर मन-मस्तिष्क और वृत्तियों से जरूर उम्दा किस्म के भिखारी होते हैं। आजकल माँगने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है।  इन लोगों का काम ही बिना माँगे कभी पूरा नहीं होता। रोजाना उठते ही माँगने का लक्ष्य तय कर लिया करते हैं और फिर दिन भर इसी फिराक में लगे रहते हैं कि कैसे अपना लक्ष्य पूरा हो।

ऊपर से भले ही कोई इन्हें भिखारी कहने का साहस न कर पाए, लेकिन जो लोग इनके संपर्क में आते हैं उन्हें इस बात का अहसास जरूर हो जाता है कि देश में इनसे बढ़कर शायद ही कोई रीयल भिखारी हों। इस किस्म के लोग जहाँ कहीं होते हैं वहाँ बिना माँगे कुछ भी नहीं करते हैं। इन्हें हर काम में भीख चाहिए। भीख मिलने की उम्मीद हो तो कई कोस पैदल चले जाएंगे और पीछे मुड़कर देखेंगे भी नहीं। और जहाँ कुछ न मिले, वहाँ कभी हाथ नहीं डालेंगे।

हमें इस सिद्धान्त को मान लेना चाहिए कि जो कोई कुछ भी माँगता है वह भिखारी है। कोई काम निकलवाने के लिए अस्मत माँग रहा है, कोई कृपा या समर्पण, कोई मुद्रा माँगने का आदी हो चला है, खूब सारे ऎसे हैं जो पैसों को हाथ तक नहीं लगायेंगे मगर गिफ्ट हो तो काम चल जाएगा। जिसे जो चाहिए, वह माँग लेता है और इस प्रकार अपने भिखारीत्व पर गर्व करते हुए जिन्दगी गुजार देता है।

अक्सर माँगने वाले कई तरफा का व्यवहार रखते हैं। ये माँगने का धर्म बड़ी ही ईमानदारी से निभाते हैं। भिखारियों-भिखारियों में भी माँग-लेन का क्रम हमेशा चलता रहा है। ये भी एक-दूसरे से भीख लिए-दिए बगैर कुछ नहीं करते। माँगना ही जिनका धरम हो गया है उनके लिए संसार के दूसरे सारे धर्म बेकार हैं, यह ऎसा एकमात्र धरम है जो जाति-पांति, ऊँच-नीच, अपना-पराया सभी प्रकार के बंधनों से परे है।

अपने आस-पास थोड़ी गर्दन घुमायें और देखें, कितनी बड़ी संख्या में लोग ऎसे हैं जो बिना भीख के काम नहीं करते। कितने सारे लोग ऎसे हैं जो दिखते तो आम इंसान ही हैं मगर इनके भीतर विराट आकार का भिखारी समाया हुआ है जो बिना भीख लिए किसी को छोड़ता तक नहीं।

अपने पास दो ही रास्ते हैं। भीख देकर पुण्यार्जन कर लें या किसी वैरागी की तरह संसार के तमाम पचड़ों से दूरी बना लें। क्योंकि भिखारी सभी जगह हैं, भीख तो देनी ही पड़ेगी, चाहे जहाँ चले जाएं। (उन सभी भिखारियों से क्षमायाचना सहित जो भीख को ही जीवन का ध्येय समझ कर चल रहे हैं, भीख पाकर घर भरने के लिए ही पैदा हुए हैं।)

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