शब्दों की ताकत खो देते हैं

ज्यादा बोलने वाले

 

– डॉ. दीपक आचार्य

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हर अक्षर, शब्द और वाक्य अपने आप में कोई न कोई ऎसा सूक्ष्म प्रभाव व महानतम ऊर्जा समाहित किए हुए होता ही है जो पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक में महापरिवर्तन की भावभूमि रचने में समर्थ होता है। आदिकाल से अक्षर ब्रह्म की उपासना का यह क्रम सूक्ष्म से लेकर स्थूल जगत में विद्यमान है।

वैयक्तिक, सामुदायिक और परिवेशीय परिवर्तन तथा प्रभावों में वाणी ही सर्वोपरि कारक है जो सीधा और सटीक प्रभाव छोड़ती है और अपने लक्ष्य का संधान करती है। दुनिया के महान-महान परिवर्तनों, संघर्षों और युद्धों की भूमिका से लेकर अंत तक की स्थिति वाणी के प्रभाव का ही परिणाम रही है।

इस मामले में वाणी के महत्त्व को सर्वत्र स्वीकार किया गया है जो कि सकारात्मक या नकारात्मक, धनात्मक या ऋणात्मक दोनों ही प्रकार के वातावरण का सृजन करने में सक्षम होती है। इस दृष्टि से मनुष्य के जीवन में यदि किसी बात को सर्वाधिक धारदार और प्रभावी स्वीकार किया गया है तो वह वाणी ही है जिसके बारे में अलग-अलग मत हैं।

आदर्शवादी लोग माधुर्य और प्रेम की वाणी पर जोर देते हैं और कहते हैं कि सत्य भी यदि अप्रिय हो तो नहीं बोलना चाहिए। दूसरे प्रकार के लोग ऎसे हैं जो सत्य को सर्वोपरि मानकर सही और सटीक कहने के आदी हैं। तीसरे प्रकार के लोग उदासीन हैं जो हर हाल में चुप रहते हैं और जब कभी बोलने का मौका आता है तब अपने स्वार्थ को सामने रखकर सत्यासत्य कुछ भी बोल सकते हैं।

बोलने वालों की एक किस्म और भी है जो सही और खरी-खरी बोलते हैं और इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई नाराज हो रहा है या प्रसन्न। ये लोग आईने की तरह काम करते हैं इसलिए दूसरे लोगों को बुरा भी लगता है क्योंकि अपने बारे में सारे के सारे लोग प्रशंसा भरी बातें, अच्छी बातें ही सुनना पसंद करते हैं, अपने लिए सही और यथार्थवादी बातों को सुनना कोई पसंद नहीं करता, भले ही वे सत्य की कसौटी पर परखी हुई क्यों न हों।

कुछ लोग नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कहने के आदी होते हैं और उनका प्रभाव भी पड़ता है। दुनिया में बोलने के मामले में दो किस्में ज्यादा हैं। इनमें एक प्रजाति उन मनुष्यों की है जो खूब सारा बोलते हैं, बोलते हुए इन्हें कभी मुँह दुखने तक की नौबत नहीं आती। ये लोग नॉन स्टाप घण्टों बोल सकते हैं।

दूसरी प्रजाति में वे लोग आते हैं जो बहुत कम बोलते हैं अथवा उतना ही बोलते हैं जितना जरूरी होता है। वाणी के साथ सिर्फ शब्दों का उच्चारण ही प्रभाव नहीं छोड़ता बल्कि जो बोल रहा है उसकी वाणी कितनी सही, शुचितापूर्ण है, उस वाणी को ताकत देने वाला उसका संकल्प  कितना बलवान है तथा जो बात कही जा रही है उसका मूल्य क्या है, वह किस अनुपात में वैयक्तिक या जगत के कल्याण के लिए है,  किस मात्रा में निष्कपट और निःस्वार्थ भाव  रखती है। यह सब कुछ वाणी के साथ जुड़ा होता है। ऎसे में जब वाणी के साथ संकल्प बल और शुचिता होती है तब शब्दों की परमाण्वीय प्रभाव देने वाली क्षमताएं घनीभूत रहती हैं और जो लोग इस वाणी को सुनते हैं उनके हृदय पर गहरा असर डालती हैं।

यही कारण है कि कुछ लोगों द्वारा कहे गए दो-चार शब्द तक सामने वालों को हिला देते हैं और सोचने को मजबूर कर दिया करते हैं। ये लोग बहुत कम बोलते हैं लेकिन जितना बोलते हैं उससे कहीं अधिक सामने वालों में समझ आ जाती है। यही वक्ता का परम गुण है कि कम शब्दों में कही गई बात ज्यादा से ज्यादा प्रभावकारी साबित हो।

जिसका आचरण जितना अधिक शुद्ध होगा, उद्देश्य पवित्र होगा, उतना अधिक उसके शब्द प्रभाव दिखाते हैं। शब्दों का सीधा संबंध आचरण और शुचिता से होने के कारण ही शब्दों की ताकत महान ऊर्जाओं के आभामण्डल दर्शाती है। यही स्थिति सुनने के बारे में है। जो लोग पाक-साफ होते हैं वे कम शब्दों में ही सारी बातें समझ जाते हैं लेकिन जिनका चित्त शुद्ध नहीं है, जो झूठे, फरेबी और मक्कार हैं, जिनके आचरण मानवताहीन हैं वे लोग खूब सारा सुन लिए जाने के बाद भी किसी भी बात या विषय को अच्छी तरह समझ पाने में नाकाम रहते हैं।

जिन लोगों की कथनी और करनी में अंतर होता है उनके शब्द अपनी अर्थवत्ता को खो देते हैं तथा इनकी करनी ऎसी रहती है कि उसे दूसरे लोगों से प्रशंसा के शब्द प्राप्त नहीं हो पाते। जो लोग शब्दों की ताकत भुला देते हैं, बेबुनियाद और झूठी बातें कहते हैं या असत्य सुनने के आदी हैं, ऎसे लोगों की कथनी और करनी अभिशप्त हो जाती है और इनकी वाणी अपना असर दिखाना छोड़ देती है भले ही घण्टों तक प्रवचन या भाषणों से लोगों को भ्रमित करने या समझाने की कोशिश क्यों न करते रहें। इन लोगों को न कोई सुनना पसंद करता है, न इनके बारे में कुछ अच्छा बोलना बोलना।

दोनों ही प्रजातियों के लोग हमारे आस-पास भी ढेरों हैं। कुछ लोग ऎसे हैं जो पाँच मिनट में तसल्ली से कही जा सकने वाली बात को पचास मिनट तक लगातार बोलते रहकर भी नहीं समझा पाते हैं जबकि कुछ लोगों की वाणी में इतनी ताकत होती है कि सौ मिनट में समझायी जा सकने वाली बात को भी पांच मिनट में समझा देते हैं और ये लोग जो कुछ कहते हैं वह लोगों के गले ही नहीं बल्कि हृदय तक उतर जाता है और कई दिनों तक जेहन में परिभ्रमण करता रहता है।

यही कारण है कि जिन लोगों के चित्त और उद्देश्य पवित्र नहीं हैं, जो लोग दोहरे चरित्र वाले हैं, कथनी और करनी में जमीन-आसमान और रात-दिन का फर्क रखते हैं उनकी वाणी घण्टों बोलते रहने पर भी कोई असर नहीं डाल पाती जबकि जिनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता, दिल और दिमाग से निष्कपट और निस्वार्थ होते हैं उनकी वाणी जादुई असर डालती है और पूरे माहौल को बदल सकने में समर्थ होती है।

यही कारण है कि शुचितापूर्ण वाणी सामाजिक और परिवेशीय से लेकर वैश्विक धरातल तक का महापरिवर्तन लाने में समर्थ है। वाणी का मूल्य पहचानें और इसे सत्य, माधुर्य तथा शुचिता का पुट दें और ‘तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु’ की भावना को जीवन में अंगीकार करें।

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