नकारात्मकता ही सूँघते न रहें

कभी सकारात्मक कर्म भी देखें

– डॉ. दीपक आचार्य

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अपने आस-पास, अपने क्षेत्र में और देश-दुनिया में रचनात्मक तथा सकारात्मक कामों का बाहुल्य है और खूब सारे लोग अच्छे कामों में रमे हुए हैं लेकिन उनके बारे में न हम चर्चा करना चाहते हैं, न उनकी जिन्दगी के बारे में सोचते हैं और न ही उन लोगों को प्रोत्साहन, संबलन और विकास देने में कोई भूमिका निभा रहे हैं।

हममें से ज्यादातर लोग सकारात्मक व्यक्तित्वों और समाज तथा क्षेत्र में हो रहे अच्छे कार्यों की ओर मुँह मोड़े रहते हैं। इसमें हमारा दोष नहीं है। हमें जिन लोगों ने सिखाया है, जो लोग हमारे आस-पास अपने आपको मार्गदर्शक मान बैठे हैं, जिनके नक्शे कदमों पर हमें चलना सिखाया जा रहा है, वे सारे के सारे नकारात्मक बुनियाद पर ही बड़े हुए और कहे जाते हैं।

इस कारण मानवीय पक्षों का मौलिक चिंतन इनमें हमेशा गौण होता रहा है और अपने स्वार्थ तथा धूत्र्तताओं ने कभी दूसरों का भला करने या सोचने की जरूरत नहीं समझी है। हम जो कुछ कर या करवा रहे हैं, जो कुछ सोच रहे हैं, वह सारा अपने ही आस-पास घूमने लगा है। हमारी बौद्धिक क्षमताओं और रचनात्मक कर्मयोग का सुन्दर मूल्यांकन तभी सामने आ सकता है जबकि हमारे भीतर वे क्षमताएं हों जो आम आदमी के लिए जरूरी हों।

आज हममें से कई सारे लोगों में न उतना बौद्धिक या शारीरिक सामथ्र्य है, न समाज और देश के लिए कुछ करने की ललक या माद्दा, यहाँ तक कि हम सामान्य आदमी के स्तर पर भी सोचने लायक योग्यता धारण नहीं करते। इसके बावजूद हमें जिन्दा रखने के लिए ईश्वर की कृपा और असीम दया ही है जो हमें ऎसे-ऎसे काम मिल गए हैं जिससे हम कमा-खा रहे हैं और दूसरों पर ऎसे रौब झाड़ रहे हैं जैसे कि हम ही दुनिया के योग्यतम व्यक्ति हों, जिन्हें औरों के मूल्यांकन के लिए तैनात किया हुआ है।

आजकल हर इलाके में नकारात्मक लोगों की बाढ़ आयी हुई है। इन लोगों की आँखों पर लगा चश्मा हमेशा हर क्षण उन्हीं बातों को तलाशता है जिनमें कुछ न कुछ नकारात्मकता की गंध आए। किसी दिन इन्हें कहीं कोई नकारात्मक बात न दिखायी दे तो ये लोग अपने स्तर पर कुछ ऎसी भूमिका या षड़यंत्र रच ही लेते हैं जहाँ से निकलने वाला धूँआ नकारात्मकता का कोई न कोई कतरा इन भूखे-नंगे और प्यासे लोगों को दीख ही जाता है। कुछ लोग तो ऎसे पैदा हो गए हैं जिनकी पूरी जिन्दगी गंदे विषयों और दुर्गन्ध तलाशने में ही खर्च हो जाती है। इन दिनों ऎसे लोगों की बहुतायत है जो कभी स्टींग, तो कभी स्कूप के नाम पर समाज के भीतर कहीं न कहीं से कोई सडांध सूँघ ही लेते हैं और फिर दुर्गन्ध के कतरों को रह-रहकर समाज और क्षेत्र की छाती पर बादलों की तरह उड़ाते रहकर स्वर्गीय आनंद का अनुभव करते रहते हैं।

इन लोगों को इससे कोई सरोकार नहीं कि समाज पर इनका क्या प्रभाव पड़ेगा और इनकी भूमिकाओं को किस प्रकार आँका जाएगा। समाज और क्षेत्र में होने वाले अच्छे कामों और अच्छे लोगों के बारे में सोचने की इन्हें कभी फुर्सत नहीं होती। जबकि समाज या क्षेत्र का वास्तविक भला चाहने वालाें के लिए यह जरूरी है कि जो अच्छाई हमारे आस-पास है, उसे प्रोत्साहित करें, आगे लाएं और हरसंभव संबल प्रदान करें ताकि समाज के उत्थान और श्रेष्ठीजनों के रचनात्मक कर्मयोग को प्रतिष्ठा मिल सके और चहुँ ओर सकारात्मक भावभूमि भरा सुनहरा एवं सुगंधित परिवेश स्थापित हो सके। यह ध्यान रखना होगा कि जो लोग नकारात्मक छवि के हैं, नेगेटिव ही नेगेटिव सूँघने के आदी हैं, मरने के बाद भी इनकी आत्मा जाने किन-किन गलियारों में भटकती रहती है।

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