सबसे बड़े दुश्मन वे हैं

जो विश्राम में बाधक हैं

– डॉ. दीपक आचार्य

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मनुष्य हो या मशीन, पशु हो या पक्षी या फिर दुनिया का कोई सा जड़ या चेतन, सभी के लिए रोजाना का विश्राम और शून्य में जाना जरूरी है। पशु-पक्षियों को देखें तो वे रोजाना अपनी दिनचर्या को इतना व्यवस्थित रखते हैं कि निर्धारित समय पर जगते और सोते हैं और विश्राम काल में कोई भी एक-दूसरे को तंग नहीं करता।

आज मनुष्य के लिए दुनिया जहान की सारी चिंताओं में सबसे बड़ी चिंता आराम और नींद के अभाव की है। दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक वे हैं जो शोषक हैं, दूसरे वे हैं जो शोषित हैं। इन दोनों की हजार किस्में हैं जो एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हुए अपनी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। कुछ लोगो को हर क्षण का इस्तेमाल अपने हक़ में करने की महामारी लगी हुई है और ये लोग न औरों की परेशानी देखते हैं, न इनमें औरों के प्रति संवेदनाएं होती हैं।

ये लोग अपने स्वार्थ में इस कदर रमे रहते हैं कि अपने नंबर बढ़ाने से लेकर अपनी ऎषणाओं की पूत्रि्त व बेहिसाब धन-दौलत जमा करने का लक्ष्य लेकर चलते हैं और ऎसे में इन्हें न मनुष्य दिखाई देते हैं, न पशु-पक्षी। इन सभी का अपने लिए अंधाधुंध उपयोग करना ये लोग अच्छी तरह जानते हैं।  इन लोगों के लिए जीवन में विश्राम का कोई मोल नहीं होता क्याकि ये जीवन के मूल मकसद से भटक कर ऎषणाओं के जंगल में भटके हुए होते हैं। लेकिन उनकी वजह से दूसरे भोले और सज्जन लोगों को परेशानियों को सामना करना पड़ता है। दूसरी तरह के इन लोगों के भाग्य में हमेशा शोषित होना और जिन्दगी भर परायों की वजह से कुण्ठित, चिंतित और तनावग्रस्त रहना लिखा है।

हर व्यक्ति के लिए विश्राम वह नितांत अनिवार्य जरूरत है जिसके बगैर न दीर्घायु की कामना कर सकते हैं, और न ही जीवन के आनंद की। हमारे सबसे बड़े शत्रु वे हैं जो बिना किसी आपातकालीन और अपरिहार्य कारण के हमारे विश्राम काल में बाधा पहुंचाते हैं।  उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानना चाहिए जो छुट्टी के दिन भी रोजमर्रा के कामों से बाँधे रखते हैं, अवकाशकालीन समय की निर्मम हत्या करते हैं और बिना किसी आपातस्थितियों के बेवजह परेशान करने के आदी हैं। ऎसे लोग हमेशा बद्दुआओं के शिकार रहते हैं और उन्हें भी अपयश और हिंसा के दोष का भागी बनना पड़ता है।

अवकाश का अर्थ ही यह है कि व्यक्ति रोजमर्रा की उबाऊ जिन्दगी से थोड़ा मुक्त रहकर घर-गृहस्थी के काम-काज कर सके, पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को पूरा कर सके, अपनों के बीच रहने का सुकून प्राप्त कर सके तथा औरों को सुकून दे सके या फिर विश्राम कर सके। आज विदेशों में आदमी को पर्याप्त विश्राम देने के प्रयासों पर जोर दिया जा रहा है। हमें भी इनसे सीखना होगा।

वे लोग भी हमारे शत्रु हैं जो सोने के समय रात को दस बजे बाद फोन और मोबाइल से तंग करते हैं।  और वे लोग भी जो जल्दी सवेरे योग-व्यायाम और ध्यान आदि के वक्त फोन दनदनाते हुए तंग करते हैं। दुनिया में वे सारे लोग हमारे शत्रु हैं जो हमारे शरीर, मन-मस्तिष्क को विश्राम नहीं देना चाहते। ऎसे लोगों के कारण से ही हम अपनी ऊर्जाओं का दिन-रात क्षरण करते हुए शरीर और मन-मस्तिष्क दोनों से थक जाते हैं और हमारी आयु तथा जीवनीशक्ति पर घातक प्रभाव पड़ता है।

अपने मन-मस्तिष्क और शरीर को तरोताजा रखने का दायित्व हमारा अपना है, इस मामले में हमारी और कोई मदद नहीं कर सकता। आज भागदौड़ भरी आदमी की जिन्दगी मेंं अधिकांश लोग इसी कारण से परेशान हैं कि उन्हें उतने आराम या नींद की प्राप्ति नहीं हो पा रही है जितनी होनी चाहिए। यही कारण है कि आज अधिकांश लोग हृदय रोग, डायबिटिज, ब्लड़प्रेशर, मनोरोग, माइग्रेन, कमजोरी, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, क्रोध आदि ढेरों बीमारियों से ग्रस्त होते जा रहे हैं।

आदमी से लेकर समाज तक की सेहत को देखें तो  इसका एकमेव कारण यही है कि आज किसी को आराम नहीं मिल रहा है, न नींद निकालने का समय। यह स्थिति न हमारी सेहत के लिए ठीक है, न समाज और देश के लिए। क्योंकि देश को जिस ताजातरीन ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसका अभाव रोगों को जन्म दे रहा है, आदमी को असमय बूढ़ा करने लगा है और हर आदमी तनावग्रस्त अवस्था में जैसे-तैसे काम कर रहा है।

संभलना सभी को होगा। जो विश्राम या नींद में बाधा पहुंचाते हैं उनको भी, तथा उन लोगों को भी जो चुपचाप सब कुछ सहन करने को विवश हैं। ईश्वर ने जो समय धरती पर दिया है उसका भरपूर उपयोग करने के लिए नियमित और अपेक्षित विश्राम तथा निद्रा लें और दीर्घायु रहकर  हमेशा ताजगी भरे रहकर समाज और देश की सेवा में जुटें।

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