आओ मना ही लें

एक दिन मदर के नाम

 

– डॉ. दीपक आचार्य

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जिंदगी की इस आपाधापी के बीच हमारे पास अब किसी के लिए इतना समय ही नहीं बचा है कि उसे हमेशा याद रखे रहने का बोझ उठा सकें। हमें हमेशा वही वर्तमान याद रहता है जो हमारे काम आ सकता है, हमारे भविष्य की कल्पनाओं को साकार स्वरूप दे सकता है। हमें भूत के उन लोगों की कभी याद नहीं आती, न हम याद करना चाहते हैं, चाहे वे हमारी जिंदगी के लिए कितने ही अहम और अनन्य क्यों न हों।

हमारे लिए आज का जितना महत्त्व आज दिख रहा है उतना कुछ दशकों पहले नहीं था, आज को हम अपने कल को सुनहरा बनाने की नींव रखने के फेर में अपने भूत को भुला बैठे हैं और हमने हमारी स्थिति उस अमरबेल की तरह कर डाली है जिसकी न जड़ें होती हैं, न कोई आधार, बल्कि जो जहाँ हमारे लिए मिला, हम उसी के हो लिये।

यही वजह है कि हम न किसी को लंबे समय तक अपना बनाए रख सकते हैं न हमारी औकात या उदारता ही ऎसी है कि अपने लोगों को अपना बनाए रखकर आत्मीयता का बोध करा सकें।  जो लोग हमारे लिए जानदार हैं उन्हें हमने वस्तु मान लिया है और जो बेजान जड़ हैं उन्हें हम अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगे हैं।

भौतिक विलासिता और भोगवादी अप-संस्कृति में हमने सारे रिश्ते-नातों और संबंधों को भुला दिया है। इनमें वे सारे लोग भी आ गए हैं जो हमारे जीवन और जीवनी निर्माण के सूत्रधार हैं। फिर चाहे वे हमारे माँ-बाप हों, दादा-दादी, भाई -बंधु और भगिनी हों या फिर कोई से संबंध। इन सारे संबंधों के औपचारिक निर्वाह के लिए हमने इन सभी को एक-एक दिन में बाँट दिया है। इस एक दिन जी भर कर सारी औपचारिकताओं को निर्वाह कर डालो, श्रद्धा के ज्वार में नहा भी लो, नहला भी डालो, उपहारों की झड़ी लगा लो, नकली प्यार-दुलार दर्शा लो, कार्ड्स, एसएमएस और संदेशों की श्रृंखलाएं सजाते हुए शब्दों की जादूगरी दिखला डालो और अपने आपको साबित कर डालो कि हमसे अधिक कोई श्रद्धावान हो ही नहीं सकता। फिर साल भर के लिए इन रिश्तों को ताक में रख दो।

भारतीय समाज में नकलची बंदरों की तरह उछलकूद करने वाले, अपनी परंपराओं को जीवनपद्धति से नासमझ ऎसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो अपनी संस्कृति को भुला कर पागलों की तरह जाने कितने-कितने डे मनाकर अपने आपको आधुनिक और अभिजात्य मनवाने के पाखण्डों में जुटे हुए हैं।

आज मदर्स-डे की धूम रहने वाली है। मीडिया के सारे मंचों से लेकर हर जगह मदर्स डे के नाम पर हो हल्ला हो रहा है। यह दिन उस नारी के प्रति समर्पित कहा जाता है जिसने नौ माह अपने पेट में रखकर, सारी मुसीबतें सहन कर, अपने खून-पसीने की समिधाओं का हवन कर हमें बनाया और सृष्टि को सौंपा। जिसे हर क्षण याद रखा जाना चाहिए, जो हर क्षण हमारे लहू में बनी रहनी चाहिए, जिसे हर पल हमारे हृदय की धड़कन का हिस्सा होना चाहिए, हर निमिष हमारे जेहन में जिसे होना चाहिए, उसे सिर्फ एक दिन याद कर लेने की जो मानसिकता हमने पाल ली है, वह जाने हमें कहाँ ले जाएगी।

उन पाश्चात्यों को जिन्हें माँ की कोई समझ नहीं है, जो माँ को बच्चा पैदा करने की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं समझ पाते, जिन्हें न माँ से कोई सरोकार है, न बाप से, न परिवार या रिश्तेदारों से, जिनका अपना कोई समाज नहीं है बल्कि जो स्वार्थ पूरा करता रहता है वह इनका परिजन बनता चला जाता है और जिससे काम निकल जाता है उनसे ये दूरी बना लेते हैं।

ऎसे भोगवादी और पशुबुद्धि लोगों के लिए यह जायज है कि वे साल भर में एक दिन मदर्स डे के नाम पर उस स्त्री को याद कर लें, जिसकी कोख से ये पैदा हुए हैं। वरना माँ को किसी एक दिन में कभी सिमट कर नहीं देखा जा सकता।

माँ की महिमा को एक दिन की आडम्बरी श्रद्धा से जोड़कर देखने वाले लोग वस्तुतः मातृघाती हैं और ऎसे लोगों को माँ के स्मरण का कोई अधिकार नहीं है। दूसरी ओर ऎसे-ऎसे लोगों की भरमार होती जा रही है जो अपनी माँ को अपने पास रखने और रोटी खिलाने तक को तैयार नहीं हैं, माँ को भार समझते हैं, फालतू का बोझ मानते हैं और माँ के ऋणों की कद्र नहीं कर माँ को प्रताड़ित करते हैं, ऎसे लोग भी मदर्स डे के दिन मदर के नाम पर आडम्बर करते हैं, मदर्स डे मनाते हैं और माँ को जलील करते हैं।

माँ की महिमा अपार है, माँ किसी की भी हो, सभी आदरणीय और सम्माननीय हैं।  माँ को चाहने वाले लोग माँ को कभी एक दिन में नहीं बाँधते, बल्कि प्रयास यह करते हैं कि जीवन पर्यन्त माँ हमारे घट में बनी रहे, हमारा हर दिन मदर्स डे हो, तभी सार्थकता है हमारे पुत्र होने में। हम चाहे कितने नाटक कर डालें, पुत्र वही धन्य और स्तुत्य है जिसका माँ के हृदय में अमिट स्थान हो।

उन सभी लोगों को मदर्स डे की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं जो कम से कम एक दिन के लिए ही सही, माँ का स्मरण करते हैं। उन माताओं को भी बधाई जिन्होंने ऎसी संतति को संसार दिखाया है जो आज के दिन माँ को याद कर साल भर का कोटा पूरा कर लिया करते हैं। भारतीय परंपरा में हर दिन मदर्स डे है, कोई एक दिन नहीं। जो लोग वाकई माँ का सम्मान करते हैं उनके लिए ऎसे नाटकों की कोई जरूरत नहीं पड़ती, माँ के हृदय में हमेशा पुत्र के प्रति ममत्व, प्रेम और वात्सल्य बना रहे, यही अपने आप में वह उत्सव है जिसे शरीर और काल से नहीं जोड़ा जा सकता।

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