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धरा पर स्वर्ग उतर आए

यदि मानवाधिकारों की समझ आ जाए

– डॉ. दीपक आचार्य

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मनुष्य जीवन धर्म, अर्थ, कर्म एवं मोक्ष आदि पुरुषार्थ चतुष्टय का दूसरा नाम ही है। पुरुषार्थ का अभाव होने पर मनुष्य होने का कोई अर्थ ही नहीं। दुनिया में हर प्राणी और वस्तु, जड़-चेतन सभी का अपना मौलिक गुणधर्म, विशिष्टता और प्रभाव है जिसके कारण से उसकी पहचान कायम है। हर तत्त्व की मौलिक पहचान और गुणधर्म को कायम रखना सभी का फर्ज है।

जब तक हम सूक्ष्म धरातल पर शुद्ध-बुद्ध और स्वस्थ नहीं सोचेगे तब तक स्थूल धरातल पर कभी भी सुनहरा आकार स्थापित नहीं किया जा सकता। चाहे वह अपना हृदयस्थल हो, दिमाग के कोने अथवा परिवेश। हर वस्तु और व्यक्ति की अहमन्यता हमें दिल से स्वीकारनी होगी, उसका आदर करना होगा तथा ‘परस्परोपग्रहोपजीवनाम’ का आदर्श वाक्य सिर्फ स्वार्थों और ऎषणाओं की पूर्ति तक ही सीमित नहीं रखकर जीवन के हर पक्ष में प्रयुक्त करना होगा।

दुनिया की आज की सबसे बड़ी समस्या इंसान है। इंसान से इंसान दुःखी, आप्त और त्रस्त है और इंसान के रूप में जब कोई सी इकाई इंसानियत का दामन छोड़ देती है तब न सिर्फ इंसानों बल्कि इंसानों की बस्तियों और शहरो तक का चैन छीन जाता है।  आज तकरीबन यही स्थिति घर-परिवार, समाज और क्षेत्र से लेकर देश-दुनिया तक फैली हुई है जहाँ सारी समस्याओं की जड़ इंसान ही बना हुआ है।

इसी इंसान के कुछ फर्ज हैं जो उसे मर्यादाओं की सीमा रेखाओं में बाँधते हैं और मनुष्यता को गौरवान्वित करते हैं। इसका दूसरा पक्ष मानवाधिकार हैं जो इंसान की स्वतंत्रता और इंसानियत को सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखकर इंसान को इंसान के रूप में जीने तथा औरों को जीने देने के सारे रास्तों को हमेशा खुला रखने की घोषणा करते हैं।

इस दृष्टि से दुनिया में मानव मात्र के लिए मानवाधिकारों का प्रावधान किया गया है। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार घोषणा में मानवाधिकारों के विभिन्न बिन्दुओं को एकदम स्पष्ट और सटीक ढंग से प्रकट किया गया है। दुर्भाग्य की बात यह है कि हम मानवाधिकारों की बात तो करते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं मगर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

आज मानवाधिकारों की जानकारी भी सभी तक नहीं पहुंच पायी है। यही कारण है कि हम लोग शोषण, अन्याय और अत्याचारों का शिकार होते रहे हैं। इनके स्वरूप अब भिन्न हो चुके हैं। मानवाधिकार घोषणा में स्वतंत्र रूप से जीवन व्यवहार, छुट्टियों को भुगतने का अधिकार, विभिन्न दबावों से मुक्त जीवन जीने का हक़ और हर पर्व-त्योहार तथा उत्सवी आनंद पाने की स्वतंत्रता का प्रावधान है लेकिन सब केवल बातों में ही रह गया है।

आदमी कई सारे पाशों में बँधा और पेचों में फंसा हुआ है।  जिसका जी चाहता है वह आदमी के साथ कर गुजरता है, फिर अपराधियों को पनपाने, पनाह देने वाले और बचाने वालों की भी कमी कहाँ है।  लोग समय का पूरा निचोड़ निकालने में माहिर हो गए हैं। हर दिन और रात उनके लिए अपना ही अपना सोचने और करने के लिए आमादा रहती है।

मानवाधिकारों का पालना करवाना जिनके जिम्मे है उनमें से आखिर कितने सारे लोग ऎसे हैं जो मानव के अधिकारों की रक्षा के लिए ईमानदारी से काम करने में विश्वास रखते हैं।  दो तरह के वर्ग हो गए हैं। एक शोषित है और दूसरा शोषक। शोषकों को मानवाधिकारों से कोई सरोकार नहीं है। उनका मानना है कि जो इंसान पैदा हुए हैं वे उनकी सेवा और सहयोग के लिए पैदा हुए हैं और इंसान के रूप में इन सुविधाओं को उन्हीं के लिए नवाज़ा गया है। इसलिए जो अपने मातहत हैं, सेवा में हैं उनका भरपूर उपयोग और उपभोग करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। और यही कारण है कि शोषकों का बहुत बड़ा वर्ग मानवाधिकारों के प्रति बेपरवाह होकर वो सब कुछ कर रहा है जो मानव मात्र के अधिकारों का हनन ही नहीं बल्कि शोषण का अधिकार है।

आज छुट्टियों का कोई वजूद नहीं रहा। बहुत बड़ा वर्ग ऎसा है जो आम आदमी को छुट्टियों से वंचित कर देता है और यही कारण है कि समाज में समस्याओं के साथ ही तनावों, दुःखों, पीड़ाओं और संत्रासों के कारण हृदय रोग, बीपी, हाईपर टेंशन, कैंसर आदि बढ़ते ही जा रहे हैं। यदि मानवाधिकारों का ही पूरा-पूरा पालन होने लग जाए और शोषक वर्ग की थोड़ी सी भी संवेदनाएं जग जाएं तो समाज से कई सारी समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाएं।

आज विश्व मानवाधिकार दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आईये संकल्प लें कि हम मानवाधिकारों की रक्षा करेंगे और मानवाधिकारों को हनन नहीं होने देंगे।

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