सेवाभावी पहल करते हैं

स्वार्थी नज़रें चुराते हैं

– डॉ. दीपक आचार्य

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सेवा और परोपकार ऎसे कार्य हैं जिनसे आत्म आनंद और जीवन-तृप्ति का अहसास होकर ऎसा शाश्वत सुख एवं सुकून प्राप्त होता है जो मनुष्य को अपने किसी और कर्म से कभी प्राप्त नहीं हो सकता। कोई आदमी कितना ही बड़ा लोकप्रिय, प्रतिष्ठित, महान, समृद्धिशाली और तमाम ऎश्वर्यों से सम्पन्न क्यों न हो, वह पूरी जिन्दगी उस सुख और आनंद  को नहीं पा सकता जो आनंद निष्काम सेवा से मिलता है।

जरूरतमन्दों की इच्छाओं को जानकार उनकी पूत्रि्त करना, हर किसी व्यक्ति की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना, सेवा के छोटे से लेकर बड़े कार्य के लिए तत्परता और परोपकार की भावना से निष्काम सेवा का मार्ग जो अपनाते हैं उनके जीवन को ही धन्य माना जा सकता है। शेष हम सभी का जीवन बेकार और कामचलाऊ ही है जो खुद के लिए जीते हैं और खुद ही खुद के जेब, घर और बैंक लॉकर भरते रहने में पूरी जिन्दगी खपा देते हैं और जब जाने का वक्त आता है तब अपने पास सब कुछ होते हुए खालीपन का अहसास होता है।

जीवन के सत्य को प्रकटाने वाले यही वे क्षण होते हैं जिस समय हमें भान होता है कि जो कुछ संचित किया हुआ है वह थोड़े क्षणों में पराया हो जाने वाला है और खाली हाथ ही लौटना है। दूसरी ओर जिन लोगों के जीवन का ध्येय सेवा व्रत और परोपकार होता है वे अपने पास कुछ न होते हुए भी जीवन भर आत्म आनंद और तत्त्वज्ञान से भरे हुए होते हैं और जब उनकी मौत आती है तब तक उनके पास लोगों की दूआओं और संचित होते गए पुण्यों का बहुत बड़ा खजाना होता है जो अंतिम समय तक जीवन की सफलता का जयगान करता हुआ प्रसन्नतापूर्वक देह परिवर्तन की भावभूमि तैयार कर देता है।

आजकल लोगों की वृत्ति आत्मा केन्दि्रत होने की बजाय आत्मकेन्दि्रत हो गई है और ऎसे में विराट विश्व में उन्हें सिर्फ अपने घर वाले, नाते-रिश्तेदार और वे लोग ही दिखते हैं जो उन्हीं की तरह स्वार्थी, मक्कार और धूत्र्त हैं। उनके लिए सेवा, परोपकार और समाज सब कुछ गौण ही रहता है। ऎसे लोग सेवा और परोपकार में जुटने का मौका आने पर सिर्फ दिखावे और पब्लिसिटी, समाचारों और तस्वीरों की भूख बुझाने भर के लिए आ जाते हैं। इनकी भूख मिटाने का कोई इंतजाम न हो तो ये सेवा और परोपकार के कार्यों से नज़रें चुराते हैं और बचने की कोशिश करते हैं।

इन तमाम स्थितियों के बावजूद आज भी हमारे समाज और क्षेत्र में ऎसे लोगों का वजूद बना हुआ है जो किसी भी व्यक्ति या समुदाय का कोई सा अच्छा काम हो, किसी को जरूरत आन पड़े, सबकी यथाशक्ति भरपूर मदद करते हैं और मानवीय संवेदनाओं के साथ मानव धर्म को निभाते भी हैं।

ऎसे लोग अपने जीवन में सेवा और परोपकार तथा सम्बल प्रदान करने के हर अवसर की तलाश में रहते हैं और इन अवसरों का उपयोग करते हैं। ऎसे लोगों की लोकसेवी वृत्तियों के कारण इनका अहंकार विगलित हो जाता है, प्रतिष्ठा की भूख समाप्त हो जाती है और इन सबका प्रतिफल इन्हें आत्मिक आनंद के रूप में मिलता है।

जो लोग एक बार अपने भीतर के आनंद का मार्ग पा लेते हैं उनके लिए दुनिया के सारे सुख और ऎश्वर्य निरर्थक हो जाते हैं और ऎसे लोग आत्मआनंद के माध्यम से परम शांति, सुकून पा लेते हैं। इनके लिए और कुछ करना शेष रहता ही नहीं। ‘नर सेवा ही नारायण सेवा’ का मूलमंत्र इनके  जीवन की सफलता का मूलाधार बन जाता है। सच्चा और शाश्वत आनंद पाने के इच्छुक लोगों को चाहिए कि वे बाबाओं, धूत्र्तों, लोभियों, धुतारों और लॉलीपाप देने वाले तथाकथित महान लोगों के पीछे न भागें बल्कि ईश्वर और जीवनानंद को पाने के लिए निष्काम सेवा और परोपकार के कार्यों को अपनाएं।

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