वे लोग मनोरोगी हैं

जो बेवजह तंग करते हैं

– डॉ. दीपक आचार्य

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दुनिया में दो तरह के लोग पाए जाते हैं। एक वे हैं जो अपने आप में इतने सक्षम और मौलिक प्रतिभावान हैं जो कोई सा काम सामने आ जाए, अपने दम पर खुद पूरा कर लिया करते हैं और इसके लिए दूसरों को कष्ट नहीं देते।

दूसरी किस्म में अधिकांश लोगों का बाहुल्य है जो चाहे कितना ही पॉवर मिल जाए, अनुकूल से अनुकूल परिस्थितियां हों या अपना मनमाफिक माहौल ही क्यों न हो, इन लोगों को ऎसे सुकूनदायी अवसरों पर भी आत्महीनता का बोध होता है और ये अपने आपको कमजोर महसूस करते हैं।

इस किस्म के लोग हमेशा अपने साथ बैसाखियां रखते हैं जिनके सहारे वे लोक में अपना आलोक फैलाते रहते हैं। हमारे संपर्कितों से लेकर अपने क्षेत्र में भी ऎसे खूब लोग हैं जिनकी हालत दूसरी श्रेणी के इंसानों की ही तरह है। इस किस्म के लोग चाहे कितने बड़े पद पर हों, कितने ही ज्ञानवान और पोथी पंडित हों, इन लोगों को कभी अपने आप पर विश्वास नहीं होता। ये लोग कभी कोई समस्या, आयोजन या किसी भी प्रकार का अवसर हो, अपने बूते सम्पन्न करा लेना ये अपने बस में नहीं मानते, भले ही ये इन्हीं कार्यों के संपादन के लिए नियुक्त क्यों न हों।

ऎसे लोग जहाँ कहीं रहते हैं, इनका पूरा समय अपने आस-पास लोगों की भीड़ जमा करने में लगा रहता है। इस किस्म के लोग जहाँ होते हैं वहाँ इन्हें कोई भी दिल से पसंद कभी नहीं करता, मगर इनकी हैसियत, अहंकार और अपने आपके कुछ बड़े होने का मद ही ऎसा है कि लोग अनचाहे और कुढ़ते हुए भी इन्हें इंकार नहीं कर पाते।

कई बड़े-बड़े लोगों को देखा जाए तो वे भी इस महामारी से ग्रस्त हैं।  इन लोगों की फितरत में होता है कि ये अपने आपको बड़ा, जानकार और प्रभावशाली दिखाने की गरज से उन लोगों को भी मौके-बेमौके तंग किया करते हैं जो इनके मातहत होते हैं।

इस किस्म के लोग दिखने में चाहे कितने ही हट्टे-कट्टे हों मगर मानसिक तौर पर इन्हें विकलांगता इतना अधिक घेर लिया करती है कि मानवीय संवेदनाओं तक को भूल कर शोषण भरी मानसिकता को अपना लिया करते हैं। अपने आस-पास नज़र घुमायें तो ऎसे खूब सारे मनोरोगी देखने को मिल जाएंगे, जिन्होंने अपने अधीनस्थों, सेवकों और सहयोगियों को परेशान करने का बीड़ा ही उठाया हुआ है।

ये लोग जो काम खुद कर सकने के लिए मुकर्रर होते हैं वे काम भी ये दूसरों से कराने की कोशिशों में रहते हैं। इस किस्म के लोग जहाँ जाते हैं और रहते हैं वहाँ कभी कोई काम अकेले कर ही नहीं पाते। बिना वजह ये दूसरे लोगों को बुला-बुला कर भीड़ जमा करने और बेवजह औरों को तंग करने की मानसिकता इस कदर पाल लिया करते हैं कि इनकी वजह से काफी सारे लोग हमेशा तंग रहते हैं और कुढ़ते हुए तनावों से घिरने लगते हैं।

इस किस्म के मानसिक निःशक्तों के प्रति इनके संपर्क में रहने वाले आम लोगों की धारणाएं इतनी विकृत रहती हैं कि इनके बारे में कोई कभी अच्छा नहीं कहता, बल्कि सारे के सारे लोग इन लोगों की बुराइयां करते हुए बददुआओं के टोकरे इन पर उण्डेलते रहते हैं।

आजकल ऎसे इस किस्म के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनका मानना है कि वे दुःखी हुए हैं या हो रहे हैं, इसलिए दूसरे लोगों को भी बिना किसी कारण के तंग करते रहो। ये लोग जिंदगी भर इस भ्रम में जीते हैं कि औरों को बिना किसी कारण के तंग करते हुए वे अपने गमों, दुःखों और तनावों को हलका कर सकते हैं।

बेवजह औरों को परेशान करने वाले तथा अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करने वाले ऎसे यशहीन लोगों की आयु क्षीण हो जाती है तथा इनके द्वारा अर्जित सम्पत्ति न इनके काम आ पाती है, न इनके वंशजों के। हमारे सामने खूब सारे उदाहरण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि जिन लोगों ने मानवीय संवेदनाओं से किनारा कर लिया है, उनसे वास्तविक ऎश्वर्य और आनंद भी किनारा कर लिया करते हैं।

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