रोशनी चाहें तो छोड़ें

अंधेरों का साथ

– डॉ. दीपक आचार्य

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आज दीपावली है। इसका उल्लास कई दिन चलेगा। हम यह सब कुछ करते हैं अपने जीवन में उजियारा भरने के लिए। उजियारा अपने भीतर इतना विराट और व्यापक अर्थ समेटे हुए है जिसमें जीवनचर्या और परिवेश का हर कोना समाहित है। हम अपने जीवन में हर प्रकार से रोशनी चाहते हैं। यह रोशनी तभी आ सकती है जब हमारे हृदयाकाश से लेकर परिवेश और व्योम तक रोशनी आने के सारे रास्ते निर्बाध हों, खुले हुए हों जहाँ से रोशनी पूरे वेग से हम तक पहुँच सके।

हम चाहे कितनी ही बार रोशनी का नाम ले लेकर आवाहन करते रहें लेकिन रोशनी के प्रवाह मार्गों को बाधित करते रहें, तब न रोशनी आ सकती है, न कोई सुकून ही। उजियारा और अँधेरा दोनों का वजूद एक साथ कभी नहीं हो सकता। यह दिन-रात की तरह है।  हमारी विडम्बना यह है कि हम अंधेरों को सहचर बनाते हैं और रोशनी का आवाहन करते हैं। अपने जीवन की सारी दुविधाओं का यही एकमात्र कारण है। पहले हम तय कर लें कि हमें उजियारा चाहिए या अंधेरा। इन दोनों का साथ कभी नहीं रह सकता। आजकल हर आदमी अपनी जिन्दगी में सुख-समृद्धि और विकास की रोशनी चाहता है, दिली सुकून चाहता है और इसके लिए साल भर जतन करता रहता है।

दीपावली पर तो लक्ष्मी पाने के फेर में इतनी चकाचौंध पैदा कर डालता है, इतना शोर मचा देता है कि बस। हम जीवन में आलोक भरना तो चाहते हैं लेकिन चल पड़े हैं उन रास्तों पर जहाँ अंधेरे ही अंधेरे पसरे हुए हैं। यह अंधेरा कई अर्थों में हमारा संगी-साथी बना हुआ है।  अपने क्षुद्र स्वार्थों और ऎषणाओं के जाने कितने मकड़जालों ने हमें उस स्थिति में ला खड़ा कर दिया है जहाँ हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके हैं कि हमें अंधेरे और अंधेरा पसन्द लोग खूब रास आ गए हैं, हम उन सभी लोगों की चापलुसी करने में गौरव का अनुभव करते हैं जो मनोमालिन्य से भरे हुए हैं और तमाम प्रकार के अंधेरों को संरक्षण देने में माहिर हैं।

हमारे आस-पास अंधेरा पसरा है, हम उन लोगों के साथ रहने लगे हैं जो अंधेरों के पर्याय ही बने हुए हैं। दिन के उजालों में भी हम वे काम करने लगे हैं जो रात के अंधेरों में भी छुप-छुप कर करने पड़ते हैं।  दूसरी ओर हमारी सारी वृत्तियाँ भी ऎसी होती जा रही हैं कि उजियारा हमारे पास आने तक में शरम महसूस करने लगा है।  इन विचित्र हालातों में हम लक्ष्मी को रिझाने के लिए, दीपावली के नाम पर कितनी ही रोशनी का ज्वार उमड़ा दें, सारी ताकत झोंक दें, मगर उजियारे का कोई कतरा तक पास नहीं आने वाला। जीवन की दशा और दिशा को स्पष्ट रखें। अंधेरा चाहें तो उजाले पाने के नाटक न करें।  असल में रोशनी पाना चाहें तो अँधेरों का दामन छोड़ें, अँधेरा पसन्दों को तिलांजलि दें।

अँधेरों को छोड़े बिना उजियारा लाने के सारे जतन अभिनय से ज्यादा कुछ नहीं। मन-मस्तिष्क को साफ-सुथरा रखें, शुद्धता लाएं, जीवनशैली को धर्ममय एवं नीतिसंगत बनाएँ, शुभ्र कर्म करें और उन तमाम रास्तों को खुला रखें जिनसे होकर उजाले को हम तक पहुँचना है। उन सभी मार्गों को अंगीकार करें जहाँ से उजाला पाने की उम्मीदें हैं।  तय हमें करना है – उजाला चाहें, तो अँधेरों से तलाक लेनी ही होगी।

सभी को दीपोत्सव एवं नव वर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ …..

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