अच्छे बगीचे के निकम्मे माली हैं राहुल गांधी

राकेश कुमार आर्य
केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने पिछले दिनों अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि कांग्रेस वैचारिक भटकाव का शिकार है। हम अब तक राहुल के विचारों की सिर्फ झलकियां ही देख सके हैं। वह इन विचारों को बड़ी घोषणाओं में तब्दील नहीं कर सके हैं।
कानून मंत्री ने चाहे जिन परिस्थितियों में ये बात कही है, लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा है वह सही कहा है। देश के आम आदमी की बात को उन्होंने शब्द दिये हैं। तुनक मिजाजी के मूड में बांहे समेटते राहुल गांधी देश के जनमानस पर अपनी कोई आकर्षक छवि नहीं छोड़ पाये है। यहां तक कि वह नेहरू गांधी परिवार की विरासत के तिलिस्म को बनाये और बचाये रखने में भी असफल ही रहे हैं। जबकि उन्हें इस विरासत का महल बड़ी भव्यता से बना हुआ मिला था। सचमुच इतना भव्य भवन की कई लोगों के लिए तो पीढिय़ों की लड़ाई के बाद भी बना नहीं मिल पाता।
यह राहुल गांधी ही थे जिन्होंने यूपीए-1 के कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार करने की वकालत करते हुए संसद में चार लाइनें पढ़ दी थीं, तो अगले दिन उनकी ये चार पंक्तियां ही अखबारों की सुर्खियां बटोर रही थीं। बहुत लोग हैं इस देश में जो शिक्षा के लिए राहुल गांधी से कई गुणा चिंतित हैं, और रोज विद्वतापूर्ण भाषण इसके लिए झाड़ते हैं, इतना ही नही ये लोग व्यावहारिक रूप से शिक्षा के विकास के लिए कार्य भी करते हैं, लेकिन उनके प्रयास, उनके भाषण और उनके कार्य अखबारों में कोई स्थान नहीं बना पाते। कारण यही होता है कि उनके पास नेहरू गांधी खानदान जैसी कोई विरासत नही होती।
हमारा मानना है कि नेहरू गांधी खानदान की यह देश बपौती नही है। लेकिन मीडिया के एक वर्ग ने नेहरू गांधी खानदान को देश की बपौती सिद्घ करने में विशेष योगदान दिया है। इसी कारण सही और पुरूषार्थी लोगों की उपेक्षा करने की प्रवृत्ति मीडिया के एक वर्ग में पायी जाती है।
राहुल गांधी को जितना समय मिला है यदि उनके पास अपनी सोच और दृष्टिï होती तो इतने समय में वह स्वयं को साबित कर सकते थे। लेकिन उन्होंने स्वयं को स्थापित करने का वो प्रयास नही किया जिसे देश उनसे चाहता था। देश के सुंदर बगीचा है और इस बगीचे को हमेशा ही एक होशियार और विवेकशील माली की आवश्यकता होती है, पर राहुल गांधी अच्छे बगीचे के निकम्मे माली सिद्घ हुए हैं। उनके पिता राजीव गांधी का जुमला था-हमने देखा है, हम देख रहे हैं, और हम देखेंगे-आज यह जुमला राहुल गांधी पर फिट बैठता है। उन्हें हमने अपने बगीचे में लगे पौधों की टहनियों, शाखों और जड़ों पर रोज नये नये बेतुके प्रयोग करते देखा है, देख रहे हैं और देखते रहेंगे, बाग सूखता जा रहा है और बाग का माली अपने बचपने में रहते हुए नये-नये प्रयोग कर रहा है। सारा देश उनके अनाड़ी पन पर अफसोस व्यक्त कर रहा है। राहुल गांधी के सौभाग्य से उन्हें इस समय सोता हुआ और झगड़ता हुआ स्वार्थी विपक्ष मिला हुआ है, जिससे कांग्रेस सत्ता में बनी हुई है। भाजपा अपने अंर्तकलह में व्यस्त है, वहां नेता की तलाश को लेकर युद्घ छिड़ा हुआ है। इसलिए देश के मैदान में कांग्रेस का अनाड़ी युवराज राजनीति के कैसे कैसे खेल दिखा रहा है, इसकी परवाह भाजपा को नही है। जबकि मायावती आय से अधिक सम्पत्ति के मामलों में अपने खिलाफ रचे जा रहे षडयंत्रों को लेकर भयभीत हैं। यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि बसपा अपनी पूंछ को नीचे दबाकर उसी बर्तन में खा रही है जिसमें उसकी धुर विरोधी सपा खा रही है। प्रणव मुखर्जी के नाम पर दोनों का यूपीए को दिया गया समर्थन ऐसी ही स्थिति बयान करता है।
सपा को उत्तर प्रदेश के विकास के लिए पैसा चाहिए। इसलिए वह भी कांग्रेस के साथ है।
प्रदेशों में गैर कांग्रेसी सरकारों का होना कांग्रेस के लिए दुर्भाग्य की बात है। सारे प्रदेशों में अपनी सरकार बनाने के लिए एक आंदोलनात्मक रणनीति राहुल को बनानी चाहिए थी। उन्हें पुरूषार्थ संघर्ष और उद्यम की भागीरथ साधना करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने केन्द्र में अपनी सरकार होने को ही पर्याप्त समझ लिया। उन्हें लगा कि जब देश का खजाना हमारे हाथ में है, तो जो हम चाहेंगे वही होगा, लेकिन कब तक होगा? वह उत्तर प्रदेश को अपना बनाने आये। पर उन्हें ये ही नहीं पता था कि उत्तर प्रदेश की बीमारी क्या है? उन्होंने मरीज को सही ढंग से डायग्नोज नही किया, पर अंधे होकर ईलाज करना शुरू कर दिया। परिणाम निकला अमेठी और रायबरेली की जनता ने भी इस अंधे और अनाड़ी वैद्य को नकार दिया। तब कुछ शर्मिंदा होकर युवराज अपनी राजधानी लौट गये। तब से युवराज इतने हताश हैं कि अब तक उनकी ओर से बांहें समेटने की मुद्रा को याद दिलाता कोई वक्तव्य प्रदेश के विषय में नहीं आया है। यूपीए की जनता उनसे चुनावों के समय ही पूछ रही थी कि चुनावों के बाद भी क्या समय दोगे? चुनाव में मतदान के दिन तक भी जनता को इस बात का जवाब नही मिला। इसलिए जनता के मन मस्तिष्क में यह सवाल और भी बड़ा होता चला गया और ऊहापोह की स्थिति में फंसी जनता ने निर्णय इस बात के पक्ष में दिया कि युवराज चुनाव के बाद राजधानी में आराम फरमाएंगे। आज युवराज वही तो कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश बीमार हो सकता है पर प्रदेश की जनता बीमार नहीं थी वह होशियार थी और उसने अपनी होशियारी से निर्णय लिया। शायद युवराज आज भी इस निर्णय के निहित अर्थों को न समझ पाये हैं।
अब सलमान खुर्शीद के मुंह से जनता बोली है। इससे सोई हुई कांग्रेस की आंखें खुली हैं। इंडिया इज इंदिरा एण्ड इंदिरा इज इंडिया की चाटुकारी संस्कृति कांग्रेस की संस्कृति रही है। अर्जुन सिंह जैसे कितने ही नेता इसी चाटुकारिता को करते हुए चले गये हैं और कितने ही अभी जिंदा हैं, लेकिन सलमान का बयान इस चाटुकारिता की संस्कृति को भी एक चुनौती है कि सच को सच कहो। तुम दिन को कहो रात तो हम रात कहेंगे- इस फिल्मी गीत पर नाचना थिरकना छोड़ो। सोनिया राहुल चालीसा की बजाय संगठन और देश के विषय में सोचो।
यद्यपि सलमान अपने बयान से पलट गये हैं, उनकी जवान ने जो कुछ कहा उनके पैर उसके वजन को झेल नही पाये और दिल की धड़कनें सामान्य नहीं रह पायीं। लेकिन इस सबसे भी यही पता चलता है कि एक सच जबान की कमान पर चढ़कर बाहर निकल गया है और वह सही निशाने पर भी जा लगा है लेकिन शिकारी कमजोर था, घबरा गया और घायल शेर की चिंघाड़ निकलने से पहले ही बेहोश होकर गिर गया। मजबूत कामचोर पर कमजोर जब वार करता है तो ऐसी स्थिति बन ही जाया करती है। अब जंगल के सारे पशु पक्षियों में हडकंप मचा है कि शेर पर वार करने की गुस्ताखी किसने की है-शेर की वंदना में नेहरू गांधी खानदान की रामायण का अखंड पाठ चल गया है। सोनिया चालीसा का जप चल रहा है और सच को झूठ से दबाने की वही पुरानी कोशिशें हो रही हैं। जिन्हें देखते देखते ये देश तंग हो चुका है। मरते हुए संगठन और मरती हुई विचारधारा के ये स्पष्ट लक्षण हैं।

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