लालू जी का परिवर्तन या परिवारवाद

वीरेन्द्र सेंगर
नई दिल्ली। राजनीति में बढ़ते परिवारवाद को लेकर लंबे समय से बहस रही है। खास खतरा यही है कि बेशर्मी से इस प्रक्रिया के बढ़ते जाने से राजनीतिक दलों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विकास में लगातार बाधा आ रही है। लेकिन, मुश्किल यह है कि एक-एक करके अब प्राय: सभी दलों में यह ‘बीमारी’ तेजी से पैर पसारने लगी है। कुछ साल पहले तक परिवारवाद की राजनीति के लिए खास तौर पर कांग्रेस नेतृत्व को कोसा जाता था। लेकिन, अब तो इस मुद्दे की हवा ही निकलने लगी है। ताजा प्रकरण राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का है। राजनीति में वे जयप्रकाश आंदोलन की उपज माने जाते हैं शुरुआती दौर में लालू, कांग्रेस की परिवारवादी राजनीति के खिलाफ हुंकार भरते रहते थे। लेकिन, बिहार में सत्ता मिली, तो उनके तमाम ‘क्रांतिकारी’ विचार पिघलते गए। यह खुला तथ्य है कि लालू-राबड़ी की सरकारों के दौर में उनके परिजनों का रुतबा बढ़ गया। खास तौर पर साले बंधुओं को जमकर प्रमोट करने में लालू को कभी कोई हिचक नहीं हुई। जब उनसे परिवारवाद के मुद्दे पर सवाल किया जाता, तो वे पलटवार के रूप में कई सवाल खड़े कर देते रहे। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में कल राजद की एक बड़ी रैली संपन्न हुई। इसका नाम ‘परिवर्तन’ रैली दिया गया।
राजनीतिक हल्कों में अपने बड़-बोलेपन के लिए खास पहचान बना चुके लालू ने यही दावा किया कि इस रैली के बाद बिहार में ‘परिवर्तन’ की राजनीति की आंधी तेज हो जाएगी। उपलब्धि के नाम पर इस रैली में बड़ी भीड़ जुटाने में तो वे जरूर सफल रहे। लेकिन, इस रैली की खास उपलब्धि यही मानी गई कि उन्होंने अपने दोनों बेटों, तेज प्रताप और तेजस्वी यादव की इस मंच से भव्य राजनीतिक लॉन्चिंग करा डाली। उम्मीद जताई गई कि राजद के ये ‘युवराज’ खास तौर पर राज्य में युवाओं का दिल जीत लेंगे। तेजस्वी, लालू का छोटा बेटा है। एक दौर में क्रिकेट के लिए उसका जुनून था। अब पिता की राजनीतिक विरासत में हाथ बंटाने के लिए उसने हाथ बढ़ा दिए हैं। राजद के नेता इस ‘उत्सव’ में खूब गदगद नजर आए। नजारा कुछ ऐसा बांधा गया, माना युवराजों के इस ‘राजतिलक’ से बिहार की तमाम समस्याएं छूं-मंतर हो जाएंगी?

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