हिमाचल और हरियाणा की बदली हुई राजनीति के संकेत

कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

      भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में मुख्यमंत्री बदल दिया है और हिमाचल में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खु को फिलहाल ‘स्टेटस को’ दिया हुआ है । लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर व्यक्त किया जा रहा है । चार दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मनोहर लाल की जमकर तारीफ़ की और दूसरे ही दिन उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया । इस्तीफ़े के तुरन्त बाद विधायक दल की बैठक हुई और उसमें मनोहर लाल ने नायब सिंह सैनी , जो फिलहाल हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष और कुरुक्षेत्र से सांसद हैं , का नाम भाजपा विधायक दल के नए नेता के तौर पर पेश किया , जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया  गया । और उसके साथ ही राज्यपाल ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी । अगले दिन उन्होंने विधान सभा में 48 विधायकों के समर्थन से अपना बहुमत भी सिद्ध कर दिया । यह सारा घटनाक्रम इतनी तेज़ी से घटित हुआ कि मीडिया इसकी भनक तक नहीं पा सका । लेकिन इस आप्रेशन में , जननायक पार्टी , जो ओम प्रकाश चौटाला के परिवार में राजनैतिक कुश्ती के चलते अस्तित्व में आई थी, हलाल हो गई । जननायक पार्टी के दुष्यन्त चौटाला मनोहर लाल की सरकार में अपने दस विधायकों के बल पर उप मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान थे । नब्बे सदस्यीय विधान सभा में भाजपा के 41 विधायक हैं । नायब सिंह सैनी की सरकार को सात निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दे दिया तो जननायक दुष्यन्त की जरुरत नहीं रही । सब जानते हैं कि राजनीति में बिना जरुरत कोई किसी को नहीं ढोता । कहा जा रहा है कि दुष्यन्त हरियाणा में लोकसभा की दस सीटों में से दो सीटों की माँग कर रहे थे लेकिन भाजपा एक सीट देने को तैयार थी । पिछले पाँच साल में जननायक पार्टी ने अपना जनाधार ,दुष्यन्त चौटाला की कार्य प्रणाली के चलते अपना जनाधार खोया है और ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो यानि इंडियन नैशनल लोक दल ,अपनी तमाम कलाबाज़ियों  के वाबजूद हरियाणा में पुन: जडें नहीं जमा सकी । भारतीय जनता पार्टी ने चौटाला परिवार के इस राजनैतिक पतन को देख लिया था लेकिन चौटाला परिवार शायद जानकर भी अनजान बना हुआ था । इतना ही नहीं दुष्यन्त चौटाला तो अपनी शर्तों पर अडा हुआ था । जहाँ तक कि दुष्यन्त अपने ही घर में टूट रही दीवारों की आवाज नहीं सुन सका । उसके दस विधायकों में से पाँच उसका साथ छोड़ गए । कुल मिला कर चार विधायक उसके पास बचे ।
         भाजपा पिछले कुछ समय से सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से देश में सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रयोग कर रही है । उसी प्रयोग के चलते नायब सिंह सैनी हरियाणा के मुख्यमंत्री बने । वे ओबीसी श्रेणी से आते हैं । जिससे पूरे राज्य में एक गहरा संदेश गया है । सोनिया कांग्रेस के राहुल गान्धी जब पूरे देश में घूम घूम कर यह घोषणा कर रहे हैं कि यदि वे प्रधानमंत्री बन गए तो वे भारतीय सामाजिक संरचना को राजनीति की बिसात पर ‘जाति जनगणना’ के नाम पर तार तार करके रख देंगे , तब भारतीय जनता पार्टी ने बिना शेर शराबा किए नायब सिंह को मुख्य मंत्री बना कर व्यवहारिक धरातल पर हरियाणा में एक नया प्रयोग किया है । इससे हुडा परिवार व चौटाला परिवार दोनों सकते में हैं । न निगलते बनता है न उगलते बनता है । ऐसे समय जब सोनिया गान्धी ,भूपेन्द्र सिंह हुडा ,ओम प्रकाश चौटाला, लालू यादव, अखिलेश यादव , एम के स्टालिन,  अपने परिवार से बाहर न देखने को तैयार हैं और न ही निकलने को तैयार हैं , नायब सिंह सैनी का मुख्यमंत्री बनना , देश में परिवार वाद की राजनीति पर गहरा आघात है । राजनीति के धुरंधर पंडित भी भाजपा की इस सांगठनिक कुशलता पर सिर धुनते नज़र आ रहे हैं । इससे पूर्व राजस्थान , मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी ने नए मुख्यमंत्रियों के चयन के समय सबको चौंकाया था । राजनैतिक विश्लेषणों की शब्दावली में चाहे इसे चौंकाना कहा जाए लेकिन यह भारतीय राजनीति में ऐसा प्रयोग कहा जा सकता है जो कई स्थापित मिथकों को तोड़ता है । कांग्रेस पार्टी ने जहाँ भारतीय जनतंत्र में ‘परिवारवाद’ का वृक्ष रोपने की कोशिश की ,जिसकी देखादेखी दूसरे राजनीतिक दलों में भी यह प्रदूषण फैला , वहीं भारतीय जनता पार्टी ने उसी ‘जन’ को राजनीति के केन्द्र में स्थापित करने की कोशिश की जिसके बलबूते ‘जनतन्त्र’ चलता है । हरियाणा में मनोहर लाल से नायब सैनी तक के इस प्रयोग के साथ साथ हिमाचल प्रदेश में हुए धमाके की पुन: विवेचना करना भी जरुरी है ।


           हिमाचल प्रदेश में राज्य सभा चुनाव में बहुमत होते हुए भी कांग्रेस के अंभिषेक मनु सिंघवी की पराजय और भाजपा के हर्ष महाजन की विजय के बाद के घटनाक्रम को देखना भी जरुरी है । फिलहाल प्रदेश विधान सभा में 62 सदस्य हैं । छह सदस्यों की सदस्यता हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष ने इस कारण से समाप्त कर दी हैं क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी के स्थान पर भाजपा के प्रत्याशी को वोट दे दिया था । इस समय सरकार चलाने के लिए बत्तीस सदस्यों की जरुरत है । भाजपा के पास पच्चीस सदस्य हैं । तीन निर्दलीय उसके साथ हैं जिन्होंने हर्ष महाजन को वोट दिया था । इसका अर्थ हुआ कि हिमाचल में सरकार बनाने के लिए  भाजपा को चार और सदस्य दरकार हैं । कांग्रेस के विक्रमादित्य सिंह की गतिविधियों को देखते हुए प्रश्न पैदा होता है कि क्या भाजपा इस समय हिमाचल में सरकार बनाने से गुरेज़ कर रही है और उसने सुखविन्दर सिंह सुक्खु की सरकार को फिलहाल ‘स्टेटस को’ दिया हुआ है ? यदि सचमुच ऐसा है तो भाजपा ने कांग्रेस सरकार को यह ‘स्टेटस को’ क्यों दिया हुआ है ? दूसरे प्रश्न का उत्तर को हो सकता है कि भाजपा पर आम तौर पर पारिवारिक राजनैतिक दल आरोप लगाते रहते हैं कि वह उनकी सरकार जोड़तोड़ से गिरा रही है जो लोकतन्त्र की मूल भावना के खिलाफ है । इसके लिए पूर्व में कर्नाटक व मध्य प्रदेश का उदाहरण दिया जाता है । शायद हिमाचल प्रदेश में भाजपा आसन्न लोक सभा चुनावों को देखते हुए इससे बचना चाहती है । लेकिन लोकसभा चुनावों में , जो अगले महीने होने वाले हैं, यदि भाजपा प्रदेश की चारों सीटों पर जीत जाती है , जिसका चुनावों के परिणाम का पूर्वानुमान लगाने वाले पंडित संकेत कर रहे हैं ,तो भाजपा क्या तब भी प्रदेश कांग्रेस सरकार को दिया हुआ यह ‘स्टेटस को’ जारी रखेगी ? यह लाख टके का सवाल आज हिमाचल प्रदेश की राजनीति में पूछा जा रहा है । राजनीति की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति इसका उत्तर न में ही देगा । इसमें एक पेंच अब और भी फँस गया है । यदि रिक्त हुए छह स्थानों के लिए चुनाव हो जाते हैं और ये सीटें लोकसभा के चुनावों के साथ ही भाजपा के खाते में आ जाती हैं , तब तो भाजपा पर जोड़ तोड़ से सरकार बनाने का आरोप भी नहीं लग सकता । लेकिन एक दूसरी सम्भावना गो भी देखना होगा । यदि कांग्रेस इन छह पूर्व विधायकों को कांग्रेस फिर से स्वीकार लेती है ? राजनीति सम्भावनाओं का खेल है । लेकिन अब कांग्रेस इनको पार्टी में तो वापिस वे सकती है लेकिन विधान सभा अध्यक्ष अब इनको देबारा विधान सभा का सदस्य नहीं बना सकेंगे । उनके पास पार्टी विप का उल्लंघन करने पर किसी सदस्य की सदस्यता समाप्त करने का अधिकार तो है लेकिन एक बार सदस्यता समाप्त हो जाने पर पुन: प्राण प्रतिष्ठा का अधिकार नहीं है ।


      भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में सामाजिक समरसता का प्रयोग किया है और हिमाचल में कांग्रेस सरकार को ‘स्टेटस को’ पर रखा हुआ है । अब लोक सभा के चुनावों के परिणाम की प्रतीक्षा कंपनी चाहिए ।

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