गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि व्यक्ति का मूल स्वभाव ही उसका धर्म है। जो अपरिवर्तनशील होता है। मूल स्वभाव को आज के परिप्रेक्ष्य में आप डीएनए भी कह सकते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार का खुराफात करता है तो समझो कि उसका डीएनए अर्थात उसका मूल स्वभाव ही उससे ऐसा करवा रहा है। जैसे नीम का मूल स्वभाव नीमत्व है और यह नीमत्व ही उसका धर्म है और जैसे भारत का मूल स्वभाव आर्यत्व अर्थात हिंदुत्व है और यही उसका धर्म है वैसे ही हर व्यक्ति का अपना मूल स्वभाव ही उसका धर्म है। कहा जाता है कि चोर चोरी छोड़ सकता है , पर हेराफेरी नहीं छोड़ सकता ।इसका अर्थ हुआ कि हेरा फेरी करना चोर का मूल स्वभाव है, जिसमें परिवर्तन संभव नहीं है। इसी प्रकार किसी साधु का साधुपन उसका मूल स्वभाव है, जिसे वह अपना धर्म स्वीकार कर निभाने का प्रयास करता रहता है।
  संसार में ऐसे अनेकों लोग हैं जो देश – काल – परिस्थिति के अनुसार किसी विशेष दायित्व का निर्वाह करते हुए बड़े पद पर बैठ जाते हैं या बैठा दिए जाते हैं। दिखाने के लिए तो वह हर संभव प्रयास करते हैं कि उनसे कोई ऐसा काम ना हो जाए जो उनके मूल स्वभाव को प्रकट कर दे, परंतु इसके उपरांत भी उनका मूल स्वभाव उनसे वही करवाता रहता है जो उन्हें करना चाहिए। भारत के उपराष्ट्रपति रहे डॉक्टर हामिद अंसारी इसका अच्छा उदाहरण हैं।
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की कहानी पर यदि हम विचार करते हैं तो पता चलता है कि वह उत्तर प्रदेश के कुख्यात हत्यारे और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के चचेरे भाई हैं। माफिया डॉन के परिवार में जन्मे डॉक्टर हामिद अंसारी के डीएनए के बारे में अब आपको हल्की-हल्की जानकारी मिलने लगी होगी। इस परिवार ने मुख्तार अंसारी को ही एक डॉन के रूप में पैदा नहीं किया है, बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में डॉन की भूमिका में रहे कई लोगों को जन्म दिया है।  इस झलक से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके खून में क्या रचा बसा है? हम सभी यह भली प्रकार जानते हैं कि जामिया मिलिया इस्लामिया संस्था हिंदुस्तान की एक ऐसी संस्था है जो देश विरोधी विचारधारा से भरपूर छात्रों का निर्माण करने के लिए कुख्यात रही है । इस्लामिक संस्कृति को बढ़ावा देने के नाम पर इसके संस्थापकों ने भारत विरोधी विचारधारा को प्रस्तुत करने के लिए ही इसकी स्थापना की थी । भारत से वेद, वैदिक संस्कृति और भारतीयता को मिटाने का लक्ष्य रखकर जिस संस्था का निर्माण किया गया हो – उसके संस्थापकों के विषय में आप स्वयं जान सकते हैं कि उनकी सोच क्या रही होगी ?
      “हामिद अंसारी” जामिया मिलिया के संस्थापकों में से एक रहे तथा डॉन “मुख्तार अंसारी” के – सगे दादा – “डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी” के भतीजे के साहबजादे हैं। उनके विचारों, गतिविधियों, कार्यशैली, कार्य व्यवहार आदि को देखकर यह पता चल जाता है कि वे भारत विरोधी मानसिकता को सहेज कर रखने वाले लोगों में से एक हैं।
सचमुच यह भारत का दुर्भाग्य था कि उन्हें देश का एक बार नहीं बल्कि दो बार उपराष्ट्रपति बनाया गया। वह उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति तक पहुंचना चाहते थे, परंतु केंद्र में मोदी सरकार के आने पर उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। उसी का परिणाम है कि उनके भीतर का यह दर्द बार-बार भारत विरोधी मानसिकता को प्रकट कर करके झलकता है।
1 अप्रैल 1937 को कोलकाता पश्चिम बंगाल में हामिद अंसारी का जन्म हुआ था। उनका परिवार गाजीपुर उत्तर प्रदेश से निकलकर पश्चिम बंगाल के कोलकाता पहुंचा था। इतिहास को खंगालने से पता चलता है कि डॉक्टर अंसारी के परिवार का कांग्रेस से विशेष संबंध रहा है। जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी एक कट्टर मुसलमान नेता के रूप में जाने जाते रहे थे । वह कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे । उन्हीं के भाई के परिवार में हामिद अंसारी का जन्म हुआ था।
       कांग्रेस ने डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी की कट्टरता का कभी विरोध नहीं किया बल्कि कॉन्ग्रेस ने अपने  डीएनए का परिचय देते हुए उनकी कट्टरता को छुपा कर उन्हें एक देशभक्त नेता के रूप में स्थापित करने का कार्य किया। सच को सच ना कहकर और ना सच समझकर कॉंग्रेस गलती पर गलती करती चली आई है। उसी का परिणाम रहा कि देश का विभाजन हुआ। यदि कांग्रेस मुख्तार अहमद अंसारी जैसे लोगों को समय रहते किसी भी गलत कार्य को करने से टोकती या रोकती या उनसे अपनी दूरी बनाती तो जिन्नाह जैसे राक्षस का जन्म नहीं होता। पर कांग्रेस वह करती चली गई जो देश के विरोध में जा रहा था। अपनी इसी गलत परंपरा का निर्वाह करते हुए कांग्रेस ने ही डॉक्टर हामिद अंसारी को देश का उपराष्ट्रपति बनवा दिया। डॉक्टर हामिद अंसारी को देश का उपराष्ट्रपति बनाने में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी का विशेष योगदान था।
      कांग्रेस का उपराष्ट्रपति रहते हुए डॉक्टर हामिद अंसारी ने वही किया जो उनके पूर्वज कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए करते रहे थे। इस प्रकार डॉक्टर अंसारी ने उपराष्ट्रपति रहते हुए या उसके पहले के या बाद के अपने जीवन में अपने धर्म का अर्थात अपने डीएनए का पालन किया। कांग्रेस ने उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर अपने डीएनए का प्रदर्शन किया। जबकि जो लोग डॉक्टर अहमद अंसारी के कार्यों की आलोचना कर रहे हैं वे अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि धर्मनिरपेक्षता एक भ्रांति है, छलावा है । वास्तव में कोई भी व्यक्ति अपने धर्म से, अपने मूल स्वभाव से अर्थात अपने डीएनए से निरपेक्ष नहीं हो सकता। हर व्यक्ति उसके वशीभूत होकर ही कार्य करता है। देश विरोधी व्यक्ति देश विरोधी कार्य करता है तो केवल इसलिए कि उसके डीएनए में देश विरोध समाया हुआ है । जबकि देशभक्त व्यक्ति अपनी देशभक्ति को अपना धर्म मानते हुए उस देश विरोधी का विरोध इसलिए करता है कि उसके भी मूल स्वभाव में अर्थात उसके डीएनए में देशभक्ति समाई हुई है।
कांग्रेस विज्ञान के इस गहरे सिद्धांत को समझने में हमेशा असफल रही। यही कारण रहा कि कांग्रेस ने धर्म को व्यक्ति के मौलिक चिंतन से जुड़ा हुआ एक ऐसा अनिवार्य तत्व स्वीकार नहीं किया जो उसकी आध्यात्मिक चेतना के साथ अपना गहरा संबंध बनाकर रहता है। धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप की या तो कांग्रेस ने उपेक्षा की या उसे समझने में अपनी नासमझी का प्रदर्शन किया।
      उपराष्ट्रपति “हामिद अंसारी” के दादा – “डॉ मुख्तार अहमद अंसारी” “खिलाफत आंदोलन” के जनकों में से एक थे। हम सभी यह भली प्रकार जानते हैं कि खिलाफत आंदोलन का भारत के स्वाधीनता संग्राम से किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं था। यह मुसलमानों के धर्मगुरु खलीफा के खिलाफत पद को बहाल कराने के लिए लड़ी गई लड़ाई थी। जिसे गांधी जी ने बढ़ावा दिया और इसे अनावश्यक ही भारत के स्वाधीनता संग्राम के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया। यह एक अलगाववादी आंदोलन था। बाद में इसी अलगाववादी आंदोलन ने मोपला कांड को अंजाम दिलवाया था। जिसमें 25000 हिंदुओं की हत्या की गई थी और हिंदुओं के उस सामूहिक हत्याकांड में सम्मिलित रहे 387 मुस्लिम लोगों को कांग्रेस आजादी के बाद स्वाधीनता संग्राम का सेनानी मानकर वे सारी सुविधाएं देती रही जो स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों के लिए उस समय दी गई थीं। भारत विरोध की यह सारी कहानी हामिद अंसारी के पूर्वजों की देन रही। इसलिए हम कह रहे हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण ही था कि एक भारत विरोधी व्यक्ति को देश का उपराष्ट्रपति बना दिया गया।
जिस खिलाफत आंदोलन ने भारत में उस समय हजारों हिंदुओं का कत्लेआम करवाया और भारत की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों को विषाक्त किया उसके प्रत्येक नेता को देशद्रोही माना जाना चाहिए था। क्योंकि उन देशद्रोहियों के कारण ही उस समय हमें 25000 हिंदुओं की हत्या का दंश झेलना पड़ा था। पर हुआ वही, जिसके लिए कांग्रेस कुख्यात रही है अर्थात हिंदू विरोधियों को बड़े पदों पर आसीन करना कांग्रेस की परंपरा रही है। अपनी इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए कांग्रेस ने मोपला कांड के बाद 25000 हिंदुओं की हत्या में शामिल रहे डॉक्टर अंसारी को पार्टी संगठन के महत्वपूर्ण दायित्व दे देकर उन्हें सम्मान देना जारी रखा।
डॉ. अंसारी जामिया मिलिया इस्लामिया की फाउंडेशन समिति  के संस्थापकों में से एक थे ।1927 में इसके प्राथमिक संस्थापक भी थे, डॉ.हाकिम अजमल खान की मृत्यु के कुछ ही समय बाद – उन्होंने दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के “कुलाधिपति” के रूप में भी काम किया।
डा. मुख्तार अहमद अंसारी परिवार – एक महलनुमा घर में रहता था जिसे उर्दू में ‘दार उल सलाम’ या अंग्रेजी में -“एडोबे ऑफ पीस” – कहा जाता था। जानकारों का मानना है कि महात्मा गांधी जब भी दिल्ली आते थे तो डा.अंसारी परिवार ही अक्सर उनका स्वागत करता था। उस समय यह घर कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों का एक उस समय एक केंद्र बन गया था। देश के साथ नमकहरामी और गद्दारी करने वाले लोगों को कांग्रेस ने आजादी के बाद भी पालने पोसने का कार्य किया। ऐसे ही नमकहराम लोगों में से एक अंसारी परिवार भी था। इसी परिवार के डॉक्टर हामिद अंसारी को कांग्रेस ने देश के प्रति वफादार मानते हुए बड़े-बड़े पदों पर सुशोभित किया। विदेशों में हाईकमिश्नर या राजपूत रहते हुए उन पर ऐसे अनेकों आरोप लगे जो उनके देश विरोधी आचरण को प्रकट करते थे। पर कांग्रेस की सरकारों ने उन आरोपों की तनिक भी परवाह नहीं की। हामिद अंसारी ऑस्ट्रेलिया में – भारत के हाई कमिश्नर रहने के अलावा सऊदी अरब, यूऐई, अफगानिस्तान तथा ईरान सरीखे कट्टर इस्लामिक देशों में ही भारत के राजदूत रहे हैं।
इसी समय उनका चचेरा भाई दाऊद एक डॉन के रूप में अपना विशाल आकार लेता रहा।
उनके इस चचेरे भाई के बारे में हम सभी जानते हैं कि वह मऊ दंगों का खलनायक रहा है । देश में दंगे कराने और राजनीतिक हिंसा के आधार पर शासन करने के लिए जानी जाने वाली समाजवादी पार्टी का वह समर्थक है। उस पर डेढ़ दर्जन संगीन मुकदमे चले हैं। एक दर्जन हत्याओं का आरोपी रहा है, लेकिन कांग्रेस ने इन सारे दोषों को नजरन्दाज कर दिया। या कहिए कि डॉक्टर हामिद अंसारी की उपस्थिति के कारण कांग्रेस उसकी ओर देख नहीं पाई। आज जब प्रत्येक प्रकार के भू माफियाओं पर कानून शिकंजा कस रहा है या किसी भी देश विरोधी व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोककर सही लोगों को आगे भेजने की एक नई राजनीतिक कार्यशैली विकसित हो रही है तब कॉन्ग्रेस के डॉक्टर हामिद अंसारी जैसे लोग कुछ अधिक ही बेचैन होते दिखाई दे रहे हैं।
उपरोक्त परिस्थितियों में उनकी बेचैनी को समझा जा सकता है। साथ ही यह भी समझा जा सकता है कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उनका इतिहास ,उनकी सोच और उनकी कार्यशैली किस प्रकार भारत विरोधी रही है ? अपनी इसी सोच के चलते डॉक्टर हामिद अंसारी भारत को कभी अल्पसंख्यकों के लिए असुरक्षित स्थान बताते हैं तो कभी हिंदू राष्ट्र को मुसलमानों के लिए असहज बताते हैं। माना कि वे देश के उपराष्ट्रपति रहे हैं, पर अब समय आ गया है कि जब उनसे वे सारे अधिकार, सुख सुविधाएं छीन ली जानी चाहिए जो उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में प्राप्त हैं। जिनका चरित्र और कार्यशैली देश के हित में नहीं है, उन्हें देश एक बोझ के रूप में कब तक ढोयेगा ? हमें देश के इतिहास को देश के उपराष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर हामिद अंसारी को सौंपने से पहले इतिहास को यह बताना होगा कि इसका इतिहास क्या रहा है? इतिहास जब इतिहास को देखेगा तो ही इतिहास को इतिहास लिखने का सही अवसर उपलब्ध हो पाएगा। दोगले लोगों के दोगले चरित्र ही लोगों के सामने जाने चाहिए – इतिहास लिखने का उद्देश्य भी यही होता है । हमें इस बात को तथ्यात्मक आधार पर स्पष्ट करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि डॉक्टर हामिद अंसारी देश के उपराष्ट्रपति रहते हुए देश के साथ गद्दारी करते रहे,। यदि हम ऐसा कर पाएंगे तो आने वाली पीढ़ियां गद्दारों को सही ढंग से समझ पाएगी।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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