संत एकनाथ जी और कांग्रेस

congress imageराहुल गांधी इस समय फिर अज्ञातवास पर हैं। कुंआरे राहुल का अज्ञातवास लोगों का बहुत खलता है। पता नही क्यों नही सोचते लोग कि अंतत: राहुल गांधी भी एक इंसान हैं, और उन्हें भी अपने जीवन को अपने ढंग से जीने का पूरा-पूरा अधिकार है।

यह राजनीति है ना ये बड़ी अजीब है। इसे समझना बड़ा कठिन है। इसमें यदि आपका विरोधी मैदान में डटा रहे तो भी वह आपके निशाने पर होता है और यदि मैदान छोड़ जाए तो भी आपके निशाने पर होता है। राहुल गांधी बिहार विधानसभा चुनावों के ठीक पहले ‘गुम’ हुए हैं तो इससे भाजपा को प्रसन्न होना चाहिए था, पर वह इस पर भी प्रसन्न नही हैं। मजे की बात ये है कि अपने कुंवारे युवराज की यात्रा पर कांग्रेस भी प्रसन्न नही हैं। महाभारत के बीच से ही उनका ‘महारथी’ सारी सेना को छोडक़र चला गया। धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के पास कोई गीता का उपदेश देने वाला तो है नही, वहां तो 64 वर्ष की अवस्था में अपनी आयु से आधी आयु की महिला से ब्याह रचाने वाले ‘दिग्गी राजा ’ हैं, जिनका ‘गीता’ में विश्वास नही है, वह ‘कर्म’ में विश्वास करते हैं और उनके कर्म का अनुकरण करने वाला उनके निशाने पर क्यों आएगा? जिसके पास कोई ‘कृष्ण’  ना हो उस सेना का सेनापति तो मैदान छोड़ेगा ही।

‘‘संत एकनाथ सिद्घ जन और सच्चे ईश्वर भक्त थे। एक दिन जब वे अपने शिष्यों के साथ थे तो उनमें से एक ने पूछा कि आप सदा प्रसन्न कैसे रहते हैं? संत एकनाथ बोले मेरे विषय में कुछ मत पूछो, आज मैं आपके विषय में कुछ महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूं।’’

‘‘मेरे बारे में।’’ भक्त आश्चर्य से बोला। एकनाथ जी ने उत्तर दिया-‘‘हां, तुम्हारे बारे में ही, वास्तव में बात ये है कि आज से सातवें दिन तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।’’

संत जी की भविष्यवाणी सुनकर शिष्य सन्न रह गया। उसके मन पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उस दिन से भक्त के स्वभाव में एक चमत्कारिक परिवर्तन आया। उसकी पत्नी और बच्चे उसके परिवर्तित स्वभाव को देखकर सभी आश्चर्य चकित थे। यही स्थिति पड़ोसियों की भी थी। वह भी उस भक्त में अप्रत्याशित परिवर्तन अनुभव कर रहे थे, अब वह छोटी-छोटी बातों से ऊपर उठ गया था। सातवें दिन शाम को भक्त ने अपनी पत्नी से कहा-‘‘आज मैं मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा। मेरे लिए एक जोड़ा साफ कपड़े ले आओ। जिसे मैं स्नान के पश्चात पहन लूंगा।’’ स्नान आदि के पश्चात वह आंगन में लेट गया। उसी समय अचानक संत एकनाथ वहां आ गये। उन्होंने अपने मरणासन्न शिष्य से पूछा-‘‘सात दिन कैसे बिताये?’’

इतने दिनों में मैंने किसी पर क्रोध नही किया, ना ही किसी से घृणा के व्यवहार का प्रदर्शन किया। कड़वा शब्द नही बोला। मैंने सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया। एकनाथ जी ने कहा-‘‘जो लोग मृत्यु जैसे शाश्वत सत्य को नही भूलते वे घृणा, क्रोध, ईष्र्या, द्वेष आदि के विषय में सोचते भी नही।’’

मृत्यु का कार्य नया जीवन देना होता है। शिष्य को भी गुरूकृपा से नया जीवन मिल गया था।

राहुल गांधी की कांग्रेस इस समय नेताविहीन है। नेहरू गांधी परिवार की एक परंपरा रही है कि यह अपने संगठन में ‘पर कैच किये कबूतर’ ही पालता है। किसी को भी अपनी मर्जी से उडऩे और आकाश की ऊंचाई मापने का अधिकार नही होता है। ‘पर कैच किये जाने’ के उपरांत भी यदि कोई व्यक्ति आकाश की ऊंचाई नापने का दुस्साहस करता है तो यह उस व्यक्ति की इस संगठन में रहने की सबसे बड़ी अयोग्यता मानी जाती है, और उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। ऊंचाई नापने पर प्रतिबंध लगाओगे तो नीचे में गिरोगे और हम देख रहे हैं कि कांग्रेस की स्थिति आज कितनी दु:खद हो गयी है।

अब कांग्रेस की छतरी पर जितने भी कबूतर बैठे हैं वे सारे गुटरगूं तो कर रहे हैं, पर उनके मुंह लटके हैं, उड़ सकते, नही एक ‘लक्ष्मण रेखा’ के भीतर रहने के लिए अभिशप्त हैं। ‘मालिक’ बाहर से आएगा तो बही दाना पानी डालेगा। तब हम देखेंगे कि इन कबूतरों की जान में जान अपने आप आ जाएगी। जो आजादी के पक्षधर होते हैं वे खुश्क रोटी खाना पसंद करते हैं, उन्हें गुलामी का हलवा पसंद नही आता। पर कांग्रेसी एक परिवार की परिक्रमा लगाते-लगाते यह भूल गये हैं कि इस हलवा ने उनके जमीरों का सौदा कर दिया है और अब वह पंखविहीन और आत्माविहीन हुए बैठे हैं।

सारी कांग्रेस को ही इस समय संत एकनाथ जी के उपदेश की आवश्यकता है। सचमुच यह संगठन मृत्यु को प्राप्त होना चाहिए-अर्थात इसका पुनरूद्घार करने का समय आ गया है। जिसके लिए किसी राहुल व्याकुल की आवश्यकता नही है, इसके लिए आवश्यकता है एक भगीरथ की जो जानता हो कि मृत्यु का अर्थ क्या है और जीवन का उद्देश्य क्या है? बिहार चुनाव से ठीक पहले विदेश भागकर ‘राहुल’ ने स्पष्टï कर दिया है कि वह ना तो मृत्यु का अर्थ जानते हैं और ना जीवन का उद्देश्य। कांग्रेस की आत्मा का सौदा करके उसे अर्थहीन बनाकर लालू के चरणों में डालने के अपराध से कांग्रेस का कोई कितना ही चाटुकार इतिहासकार भी राहुल को मुक्त नही कर पाएगा।

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