भावना मिट जाए मन से पाप अत्याचार की

वैदिक संस्कृति में गृहस्थ धर्म को सर्वोत्तम माना गया है। वेद ने एक सदगृहस्थ का चित्र खींचते हुए कहा है :-

”तुम दोनों व्यवहारों में (पति-पत्नी की ओर संकेत है) सदा सत्य बोलते हुए भरपूर धन कमाओ। हमारी प्रभु से कामना है कि यह पत्नी तुझ पति के साथ प्रेम से रहे, पति भी मधुर भाषी होकर तुझ पत्नी के साथ रम्यवाणी बोले।” (अथर्व. 14.1.31)

यहां पर पति – पत्नी दोनों से यह अनिवार्य अपेक्षा की गई है कि वे दोनों परस्पर प्रेम भावना से रहें । प्रेम न केवल इन दोनों के बीच आवश्यक है , बल्कि यह परिवार से संसार तक की भलाई के लिए भी आवश्यक है । यही कारण है कि भारतीय संस्कृति के निर्माताओं ने प्रेम को न केवल सृष्टि का मूल स्वीकार किया है अपितु उसे परिवार का मौलिक संस्कार बनाकर वैश्विक संस्कार बनाने की अनिवार्यता भी स्वीकार की है।

”प्रभु करे तुम दोनों-पति-पत्नी चकवा-चकवी की तरह प्रेम सूत्र में आबद्घ रहो। तुम्हें संतान प्राप्त हो। सुंदर घर में रहते हुए गृहस्थाश्रम की सारी आयु का उपभोग करते रहो।” (अथर्व. 14.2.64)

संसार के सभी प्राणियों में चकवा – चकवी का प्रेम बहुत प्रसिद्ध है । वेद ने भी इन्हीं दोनों के प्रेम को यहां पर पति पत्नी के लिए आवश्यक माना है । क्योंकि जब उनमें अटूट प्रेम होगा , तभी वे संसार के लिए अटूट प्रेम का संदेश दे सकेंगे।

हे देवी! ” तू प्रफुल्लचित्त रहती हुई प्रशंसनीय ऐश्वर्य और वीर पुत्र प्राप्त कर। यह गृहस्थाश्रम तुम्हारे लिए खानपान की वस्तुओं से परिपूर्ण और पुण्यतीर्थ के समान हो। तुम दोनों पति-पत्नी सदगुणों के अधिपति बनो तथा दुर्गति को तथा मार्ग में आने वाली बाधा को मार भगाओ।” (अथर्व. 14.2.6)

यहां पर पति पत्नी से अपेक्षा की गई है कि वे सद्गुणों वाले हों । जिससे किसी भी प्रकार की दुर्गति और धर्म अति के शिकार न बन पाएं ।

”प्रभु ने इस पति के लिए तुझे पत्नी बनाया है प्रभु ने इस पत्नी के लिए तुझे पति बनाया है। वही प्रभु तुम दोनों की आयु को सुदीर्घ करे। प्रभु करे तुम दोनों की जोड़ी युग-युग जीती रहे।”

वैदिक संस्कृति सुंदर बनने का आधार सुंदर परिवार को मानती है और परिवार की नींव पति पत्नी होते हैं। उनकी भावनाओं में यदि एक दूसरे के लिए अशांति व्याप्त हो जाती हैं, तो घर स्वर्ग न रहकर नरक बन जाता है। अत: ऋषियों ने पति-पत्नी के बीच के प्यार को गहरा बनाने पर बल दिया। कारण कि पति-पत्नी के मध्य के कोमल प्यार से ही वह संगीत निकलता है जो इस संपूर्ण वसुधा पर निवास करने वाले मनुष्यों के जीवन के तारों को झंकृत करने की सामथ्र्य रखता है। इसी प्रेम स्वरलहरियों से मानवता का विकास होता है और दानवता का विनाश होता है।

डॉ राकेश डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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