बांग्लादेश के जरिए बड़ा संदेश

बांग्लादेश के प्रति भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इधर जो विचार दृढ़तापूर्वक प्रगट किए हैं, उनके कई अर्थ निकलते हैं। मोदी ने 1974 का भू-सीमा समझौते को लागू करने की घोषणा की है। इस समझौते के अन्तर्गत भारत अपनी सीमा में स्थित बांग्लादेश के 51 भू-प्रकोष्ठ ले लेगा और उसकी सीमा में स्थित 111 भारतीय भू-प्रकोष्ठ उसे दे देगा। जाहिर है कि इस लेन-देन में भारत की 17000 एकड़ जमीन जाएगी और 7000 एकड़ जमीन मिलेगी। उसे 28 कि.मी. के बदले 70 कि.मी. जमीन देनी पड़ेगी। सीमा के आर-पार इन प्रकोष्ठों में रहनेवाले 51 हजार लोगों को राहत मिलेगी। दोनों तरफ के लोग अभी इन प्रकोष्ठों में घिरे हुए हैं। वे मुक्त रुप से अपने-अपने देशों में आ-जा नहीं सकते हैं।

यह समझौता 1974 से अब तक इसीलिए लागू नहीं हो सका कि हमारे संविधान में संशोधन करना पड़ता। जमीन देने के संशोधन को संसद के प्रचंड बहुमत का समर्थन मिलना असंभव हो रहा था। जो दल भी प्रतिपक्ष में होते वे इस समझौते का विरोध करते। इसके अलावा प. बंगाल और असम के सीमावर्ती राज्य भी इसका विरोध करते रहे। सत्तारुढ़ दलों के कई सांसद भी इसके पक्ष में नहीं दिखाई देते लेकिन मोदी ने हिम्मत की और सीमांत के अपने प्रदेशों को उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि इस समझौते के द्वारा वे उन्हें किसी भी प्रकार की हानि या असुविधा नहीं होने देंगे। मनमोहन सिंह ने ढाका को आश्वस्त कर दिया था कि वे इस समझौते को संपन्न कर देंगे लेकिन उनकी कमजोर सरकार ने ममता बेनर्जी के दबाव के आगे घुटने टेक दिए। भाजपा ने विरोधी दल के नाते इस समझौते का डटकर विरोध किया। उसने इस समझौते के विरोध को अपने राष्ट्रवाद को कसौटी बना लिया था लेकिन मोदी ने भाजपा की बोलती बंद कर दी। भाजपा की बांग्ला-नीति को शीर्षासन करवा दिया। अब मोदी सरकार जो संशोधन लाएगी, कांग्रेस तो उसका समर्थन करेगी ही, भाजपा को भी करना होगा। यों भी भाजपा ने 2013 के संसद के शीतकालीन अधिवेशन में लाए गए संविधान संशोधन (119 वां) के समर्थन का मन बना रही थी।

मोदी की मजबूत सरकार और व्यक्तिगत दृढ़ता के कारण यह समझौता लागू हो जाएगा। यह मोदी सरकार की छवि तो निखारेगा ही, बांग्लादेश-भारत संबंधों में भी चार चांद लगा देगा। शेख हसीना सरकार की लोकप्रियता बढ़ेगी। इस समझौते के लागू होने से दक्षेस-देशों को भी अच्छा संदेश जाएगा। वे अब मानेंगे कि मोदी ने अपनी शपथ-विधि में पड़ौसी देशों को सिर्फ दिखावे के लिए ही नहीं बुलाया था। वे वास्तव में पड़ौसी देशों से भारत के संबंध सुधारना चाहते हैं, चाहे उसके कारण भारत को थोड़ी-बहुत कुर्बानी ही क्यों न करनी पड़े।

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