नमो की मेहनत ने किया नये युग का सूत्रपात

2 सीटों से शुरू हुआ भारतीय जनता पार्टी का कारवां यूं बढ़ता हुआ इतनी जल्दी 272 के जादुई आंकड़ें को छू लेगा, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो। मात्र 3 दशक पुरानी पार्टी यदि 16वीं लोकसभा चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत में आकर सरकार बना रही है तो इसका श्रेय नि:संदेह पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और इसके निष्ठावान कार्यकर्ताओं को जाता है। 1984 के बाद यह पहला मौका है जब देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी। देश की जनता खिचड़ी सरकारों की सियासी मजबूरियों से शायद ऊब चुकी थी, तभी उसने इस बार राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए राष्ट्र को जिताया है। भाजपा की प्रचंड जीत ने भारतीय राजनीति को एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां से सुनहरे भविष्य की उम्मीदों को पर लगते हैं। मोदी की आंधी में क्षेत्रीय दलों के सिमटने की जो शुरुआत हुई है, भारतीय राजनीति में उसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे। जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता की राजनीति को जो झटका मोदी की आंधी ने दिया है उसके लिए देश का हर वो नागरिक बधाई का पात्र है जो संकीर्ण राजनीति को विकास का दुश्मन मानता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का दो अंकों में सिमटना और उसके कमोबेश सभी बड़े दिग्गजों का हारना भी इस बात का संकेत है कि अब देश की जनता, खासकर युवा वर्ग को मुद्दों के आधार पर छला नहीं जा सकता है। वहीं धर्मनिरपेक्षता की थोथी राजनीति को अपनी असफलता छुपाने का हथियार बना लेने वालों को भी इन परिणामों से करारा तमाचा पड़ा है। तुष्टीकरण को बढ़ावा देकर जो समुदायों में विभेद पैदा करते थे, उनकी राजनीति अब खत्म हो चुकी है।

हालांकि यह लेख लिखे जाने तक पूरी तरह चुनाव परिणाम सामने नहीं आए थे किन्तु रुझानों से यह स्पष्ट हो चला था कि भाजपा ने देशभर में अपना परचम फहरा लिया है। तमाम राज्यों के विधानसभा चुनावों में हुई भारी पराजय और अब लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त देश में कांग्रेस की क्षमताओं का आकलन करवाने हेतु पर्याप्त है। देशभर के क्षत्रपों की गुटबाजी, निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं में सिर फुटव्वल, केंद्रीय नेतृत्व की अनदेखी, संगठनात्मक क्षमताओं का ह्रास; कांग्रेस की देश में दुर्दशा के कारणों पर अच्छा-ख़ासा ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है। कई पुराने कांग्रेसी पार्टी संगठन को बंधवा बनाने की शिकायत 10 जनपथ से लेकर 7 रेसकोर्स रोड तक कर चुके थे लेकिन हर बार उन्हें झूठे आश्वासनों से इतर कुछ नहीं मिला। ऐसा प्रतीत हुआ मानो केंद्रीय नेतृत्व भी गर्त को प्राप्त कांग्रेसी गति से समझौता कर चुका है। कभी अल्पसंख्यक दांव तो कभी ठाकुरों की सल्तनत, कभी ब्राम्हण वोट पाने की लालसा तो कभी आदिवासियों के प्रति समर्पण का दिखावा; कांग्रेस ने देश के कमोबेश हर वर्ग को छला। यही कारण है कि सर्वहारा वर्ग का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। कहा जा सकता है कि अल्पकालीन लाभ हेतु दीर्घकालीन नुकसान उठाना शायद कांग्रेस की नियति बन चुका है। लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो देश में कांग्रेस नाम की पार्टी का अस्तित्व ही नहीं बचा। यहां तक कि पार्टी अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।

देखा जाए तो भाजपा की इस प्रचंड जीत में कांग्रेस के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। मोदी ने तो कांग्रेस के प्रति देशवासियों के गुस्से को हवा दी थी पर इस गुस्से को पैदा किसने किया? कांग्रेस के नेता देश को अपने नेताओं की शहादत के बारे में भावुक अंदाज में बताते थे पर यह भूल जाते थे कि उनकी शहादत का समय, उसकी परिस्थिति कुछ और थीं।

आज जिस युवा वर्ग ने भाजपा के वोट बैंक को बढ़ाया है, उसे इन कांग्रेसी नेताओं की शहादत से कोई लेना देना नहीं है। वह भविष्य के प्रति आशान्वित होना चाहता है, उसका वर्तमान से बैर है और अतीत उसके लिए कोई मायने नहीं रखता है। मोदी ने इसी वर्ग के मन में उम्मीद की किरण जगाई है और इसी वर्ग की बगावत कांग्रेस की जड़ों में डाल गई।

भाजपा की ऐतिहासिक जीत इस मायने में भी ख़ास है कि इसने देश में सदियों से चले आ रहे परिवारवाद को भी राजनीति से नकारने का साहस आम आदमी को दिया है। राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मुलायम सिंह और उनके पारिवारिक सदस्य जीत भले ही जाएं किन्तु इस चुनाव में उनकी नैतिक हार तो हो ही चुकी है। अब मोदी प्रधानमंत्री बनेगे और उनका उनके कार्य उनके भविष्य का निर्धारण करेंगे किन्तु यहां यह कहना ज़रूर चाहूंगा कि देश की इच्छाएं मोदी से जुडी हैं और उनका मान रखने के लिए उन्हें राजधर्म का पालन करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा। और मोदी की राजनीतिक शैली देखते हुए यह कठिन भी नहीं लगता। भविष्य की चुनौतियां बड़ी हैं पर हौसला बुलंद हो तो उनसे भी पार पाया जा सकता है। फिलवक्त तो भाजपा, मोदी और आम कार्यकर्ता को जीत की बधाई।

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