पंजाब में एक पुलिस थाने पर खालिस्तान समर्थकों का हमला होना इस बात का संकेत और संदेश है कि आम आदमी पार्टी की सरकार के चलते पंजाब फिर आतंकवाद और अलगाववाद की डगर पर चल पड़ा है। वैसे भी यह एक सर्वमान्य सत्य है कि खालिस्तान समर्थकों का दिमाग ठीक नहीं है और विदेशी शक्तियां उनके दिमाग को और भी अधिक खराब करने की चेष्टा में लगी हुई है। यह वही वैश्विक शक्तियां हैं जो भारत की बढ़ती शक्ति को अपने लिए खतरा मानती हैं और हमारे देश को कभी भी सम्मानित स्थान देने की इच्छुक नहीं रही हैं। ऐसी शक्तियों के हाथों में आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल का खेलना और इस सीमावर्ती प्रदेश को अपने एक शराबी नशेड़ी साथी को सौंप देना बहुत बड़े षड्यंत्र को प्रकट करने के लिए पर्याप्त हैं।
कभी सर्जिकल स्ट्राइक के लिए सेना से प्रमाण मांगने की बात करने वाले केजरीवाल को इस बात को सिद्ध करने के लिए कितने और प्रमाण चाहिए कि खालिस्तान समर्थक आंदोलन पंजाब में गति पकड़ रहा है और आम आदमी पार्टी की सरकार इस आंदोलन के प्रति पूर्णतया उदासीन बनी हुई है?
लगता है कि केजरीवाल की महत्वाकांक्षाऐं इतनी बढ़ गई हैं कि वे मुख्यमंत्री से संतुष्ट न होकर देश का एक और विभाजन कर अपने सपनों के एक नए देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए लालायित हैं। कभी उनके मित्र रहे कुमार विश्वास ने कुछ समय पूर्व इस प्रकार का भंडाफोड़ करते हुए केजरीवाल पर सीधे खालिस्तान समर्थक होने का आरोप लगाया था।
राजनीति में किसी व्यक्ति का कितना पतन हो सकता है और वह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए देश विरोधी ताकतों से किस प्रकार समझौता कर सकता है या पृथकतावादी ताकतों के भरोसे अपने आपको जिन्ना के मार्ग पर डाल सकता है ? यदि इस बात को समझना है तो केजरीवाल के चरित्र को समझने से सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा।
कनाडा एवं अन्य देशों में बैठे हुए खालिस्तान के समर्थक खालिस्तान बनाने के लिए भारत का एक और विभाजन करने के लिए सब कुछ करने के लिए तत्पर हैं। जिसके लिए आवश्यक है कि देश के सभी राजनीतिक दल एकता का प्रदर्शन करें और देश की सरकार एवं सेना के साथ बिना किसी शर्त के आकर खड़े हो जाएं, पर इस देश की राजनीति का दुर्भाग्य है कि यहां पर आज भी जयचंद जिंदा है।
खालिस्तान के नाम पर विदेशों से बहुत भारी मात्रा में फंडिंग की जा रही है। नए-नए उग्रवादी और आतंकवादी संगठन बनाए जा रहे हैं उनका वित्त पोषण किया जा रहा है । इसमें मजहब विशेष के कई लोग भी सक्रिय हैं। उनकी तो मन्शा ही गजवा ए हिंद है । उनकी मान्यता है कि भारत को मजहब के आधार पर यदि सिखों ने भी बंटवाने में भी सफलता प्राप्त की तो देश को तोड़ने के लिए केवल उनके मजहब को ही दोषी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें यह कहने का अवसर मिलेगा कि हमारी तरह ही सिखों के अधिकारों का भी दमन किया गया। उसी का परिणाम है कि वह भी पृथकवादी बने। ये लोग हिंदू समाज के अभिन्न अंग रहे सिख समाज को उससे दूर कर देना चाहते हैं। ऐसा करने से ही इन्हें ‘गजवा ए हिन्द’ के अपने मिशन को सफल बनाने में सफलता मिलेगी।
लोकतंत्र में विपक्ष का दायित्व केवल सरकार की आलोचना करना ही नहीं है बल्कि उसे विपक्ष अर्थात विशेष पक्ष बनकर भी दिखाना होता है। इसलिए सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए उसे स्थानापन्न नीतियों को भी प्रस्तुत करना होता है। यह बहुत आवश्यक है कि वर्तमान सरकार की आलोचना करने के लिए भी विपक्ष सक्रिय रहे , पर उसे सरकार की नीतियों की आलोचना करते समय उन नीतियों से भी बेहतर नीति देने का हुनर भी आना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना किया जाना सारे विपक्ष का संविधानिक अधिकार है, पर प्रधानमंत्री की आलोचना करते-करते राष्ट्र विरोधी लोगों का समर्थन करने की स्थिति में आ जाना किसी भी दृष्टिकोण से ना तो लोकतांत्रिक है और ना ही देश के हित में है।
इसका प्रमाण शाहीन बाग एवं दिल्ली में किसानों का धरना रहा है, जब विपक्ष ने देश विरोधी शक्तियों का साथ देकर देश को कमजोर करने का काम किया है। किसान आंदोलन के बारे में हम सभी जानते हैं कि उस समय वहां खालिस्तान समर्थक लोग आए थे। उस आंदोलन में सक्रिय रहे देश विरोधी और अलगाववादी लोगों ने नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरुद्ध जहर उगला था। जिस मंच पर देश विरोधी नारे लग रहे थे, उसी मंच पर जाकर विपक्ष के कई नेताओं ने भी अलगाववादी नेताओं को अपना समर्थन दिया था। इन नेताओं में अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और योगेंद्र यादव आदि सम्मिलित थे।
प्रधानमंत्री मोदी का पंजाब दौरा विफल करना और उनकी हत्या की साजिश रचना , यह कोई बहुत छोटी- मोटी घटना नहीं थी । सारे विपक्ष ने उस समय सच से आंखें मूंद ली थीं। राष्ट्र प्रथम के आधार पर कार्य करने की नीति पर हम काम करें।
ऐसी परिस्थितियों में पंजाब में अलगाववादी तत्वों ने जिस प्रकार एक थाने को घेरा है और उस पर आक्रमण किया है, उसकी आलोचना करने से काम नहीं चलेगा बल्कि ऐसे लोगों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति बनाने पर सभी राजनीतिक दलों को अपना सहयोग देने का भरोसा सरकार को देना होगा। आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में है ,इसलिए इस पार्टी का और इसके नेता केजरीवाल का यह दायित्व है कि वह सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर पंजाब के लिए कठोर कानून बनाने की रणनीति पर विचार करें। जिन लोगों ने आज थाने पर आक्रमण करने में अपनी उपस्थिति दिखाई है ,यह उन्हीं आतंकवादियों के मानस पुत्र हैं जिन्होंने कभी पंजाब में हिंदुओं का व्यापक नरसंहार किया था। उनके उसी नरसंहार के परिणाम स्वरूप एक दिन वह भी आया जब देश ने सिखों का नरसंहार देखा। सिखों का नरसंहार निश्चित रूप से एक जघन्य अपराध था ,पर उससे पहले जिन लोगों ने पंजाब में हिंदुओं को मारने का कार्य किया था, उन हिंदुओं के बलिदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। क्योंकि खून उनका भी लाल ही था। ऐसे में यदि आज फिर वही लोग या उनके मानस पुत्र पंजाब में सक्रिय हो रहे हैं तो हमें भविष्य के प्रति सावधान होकर सामूहिक ठोस कार्यवाही के लिए कटिबद्ध होना चाहिए।
राजनीति जब अपने धर्म से पथ भ्रष्ट या स्खलित होती है तो वह शब्दों की गरिमा भूल जाती है। कभी हमने महाभारत के समय दुर्योधन जैसे राजनीतिक व्यक्ती की वाणी को देखा था जो मर्यादा भूल चुकी थी। आज हम देख रहे हैं कि संवैधानिक प्रतिष्ठानों पर बैठे लोगों के प्रति भी कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी के शब्दों में गरिमा न होने का दोष दिखाई दे रहा है। हाल ही में कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के पिता के संबंध में कोई अभद्र टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। ऐसा करना अमर्यादित ही नहीं बल्कि शर्मनाक है।
देश के आम नागरिकों को भी इस समय सजग रहने की आवश्यकता है। मूर्ख राजनीतिज्ञों के कारण हम पूर्व में अनेक बार धोखा खा चुके हैं। उनके भरोसे देश को छोड़ना बड़ी भारी भूल होगी। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान पर एक सजग प्रहरी की भांति काम करे और राजनीतिक रूप से पथभ्रष्ट हुए राजनीतिज्ञों और राजनीति को सही मार्ग दिखाने का काम करते रहें।
अशांत होते हुए पंजाब में केजरीवाल की भूमिका को केजरीवाल पहचानें या ना पहचानें पर जनता केजरीवाल को अवश्य पहचान ले।

देवेन्द्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र

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