उन्नति का अर्थ दूसरों का सुख चाहना है : आचार्य संदीप आर्य

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून

आर्यसमाज धामावाला-देहरादून के तीन दिवसीय 140वें वार्षिकोत्सव का आज रविवार दिनांक 24-11-2019 को सोल्लास समापन हुआ। प्रातः 8.30 बजे से अग्निहोत्र यज्ञ किया गया। यजमान श्री मनोज गुप्ता तथा श्रीमती अर्चना गुप्ता जी थीं। पौरोहित्य आर्यसमाज के विद्वान धर्माधिकारी पं0 विद्यापति शास्त्री जी ने किया। यज्ञ का भव्य दृश्य देखते ही बनता था। यज्ञ में भारतीय वन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 विनीत कुमार जी अन्य स्त्री पुरुषों के साथ यज्ञ में एक यजमान के रूप में सम्मिलित हुए। यज्ञ की समाप्ति पर यजमानों को आशीर्वाद दिया गया और यज्ञ प्रार्थना हुई। इसके बाद का कार्यक्रम आर्यसमाज के सभागार में हुआ। कार्यक्रम के आरम्भ में हरिद्वार से पधारी हुईं भजनोपदेशिका श्रीमती मिथलेश आर्या जी के भजन हुए। बहिन जी को तबला वादक एवं इलेक्ट्रोनिक संगीत यन्त्र के संचालक बन्धु ने सहयोग किया। बहिन जी ने पहला भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘तुम्हारे दिव्य दर्शन की मैं इच्छा ले के आया हूं। पिला दो प्रेम का अमृत पिपासा ले के आया हूं।।’ बहिन जी दूसरा भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘तुझे बार-2 भगवन श्रद्धा से नमन हमारा, सबका तुही सहारा।’ दोनों भजन आनन्द विभोर करने करने वाले थे। बहिन जी की आवाज, प्रस्तुति तथा तबला वादक आदि की मधुर धुनों ने भजनों को बहुत प्रभावशाली बना दिया। मंत्री जी ने बहिन जी को धन्यवाद दिया और सम्बोधन के लिये सोनीपत से पधारे आर्य विद्वान आचार्य सन्दीप शर्मा जी को आमंत्रित किया।

आचार्य सन्दीप आर्य जी ने कहा कि आर्यसमाज की उन्नति की एक कड़ी सामाजिक उन्नति है। सब मनुष्यों की उन्नति हो, इसके लिये सब मनुष्यों को प्रयास करने चाहिये। सबकी उन्नति के बिना किसी एक व्यक्ति की उन्नति सम्भव नहीं है। इस विषय को आचार्य जी ने श्रोताओं को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि हमारी उन्नति तभी हो सकती है जब दूसरे लोग हमसे सहयोग करेंगे व सहयोग देंगे। हम दूसरों से पृथक होकर उन्नति नहीं कर सकते। समाज व देश के सब लोग मिलकर ही व्यवस्थाओं को बनाते हैं। जो मनुष्य अपनी योग्यता को समाज की उन्नति में लगाता है उसे समाज से अपनी निजी उन्नति करने में भी सहयोग मिलता है। आचार्य जी ने इस संसार को एक पथरीली नदी बताया। उन्होंने कहा कि पथरीली नदी में बहाव तेज होता है। पथरीली नदी को कैसे पार किया जा सकता है? आचार्य जी ने कहा कि अकेला मनुष्य इस नदी को पार नहीं कर सकता। यदि कई मनुष्य एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नदी पार करेंगे तो नदी पार हो जायेगी। संसार में हम विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक सम्बन्धों को निभाते हैं। व्यक्ति से पृथक मनुष्यों का समुदाय समाज है। आचार्य जी ने कहा कि उन्नति का अर्थ दूसरांे का सुख चाहना है। यह सामाजिक उन्नति की ओर एक कदम है। आचार्य जी ने सामाजिक उन्नति की पात्रताओं की चर्चा की। बिना पात्रता के उन्नति के लिये प्रयास करने से अपना अहित होता है। आचार्य जी ने बताया कि विदेश में सामाजिक कार्य करने के लिये सामाजिक कार्य में निपुणता की डिग्री लेनी पड़ती है तभी वहां सामाजिक कार्य किया जा सकता है। वहां डिग्री प्राप्त करने के बाद ही सरकार से सामाजिक कार्य करने की अनुमति मिलती है।

आचार्य जी ने कहा कि सामाजिक कार्यकत्र्ता की प्रथम पात्रता उसके हृदय का विशाल होना है। आचार्य जी ने एक उदाहरण देकर बताया कि एक महिला अपने एक बच्चे को लेकर पहाड़ी पर चढ़ रही थी। एक महात्मा ने उसे देखा तो उससे कहा कि तुम थक जाओगी। महिला ने कहा कि यह मेरा भाई है। महात्मा ने दो तीन बार इस प्रश्न को दोहराया और अपनी शंका का विस्तार कर उसे समझाया। महिला ने हर बार वही उत्तर दिया। अन्त में महिला बोली कि मैं जानती हूं कि आप मुझसे क्या पूछ रहे हैं। उसने कहा महात्मा जी! अपने लोगों का भार भार नहीं होता। इसलिये मुझे अपने भाई को उठाने पर कोई थकान नहीं होगी। आचार्य जी ने कहा कि इस भावना से कार्य करने कि मैं जिनके लिये कार्य कर रहा हूं, वह सब मेरे अपने हैं, सामाजिक कार्यकर्ता को निराशा नहीं होगी। जिनके लिये हम कार्य करते हैं उनके प्रति अपनापन का भाव होना आवश्यक है। आचार्य जी ने परिवार का उदाहरण दिया और कहा कि परिवार में भी मतभेद हो जाते हैं परन्तु अपनेपन का भाव उन्हें जोड़े रखता है और वह एक दूसरे के हितों के लिये कार्य करते हैं। वहां अपनों से विरोध होने पर भी निराशा नहीं होती। अपनेपन का भाव हो तो मनुष्य दूसरों की उन्नति के लिये निराश व हताश हुए काम करता है। दूसरों के प्रति अपनापन का भाव रखने वाला सामाजिक उन्नति अवश्य कर पायेगा।

आचार्य सन्दीप आर्य ने कहा कि आज लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये राष्ट्र की हानि करते हैं। इसका कारण देशवासियों में देश के प्रति अपनेपन के भाव का न होना है। आचार्य जी ने देश के प्रधान मंत्री मोदी जी का उदाहरण दिया। उनसे पत्रकार ने पूछा कि आप 18 घंटे काम करते हैं, क्या आप थकते नहीं? मोदी जी ने उसे उत्तर दिया कि मैं बहुत खाता हूं। ऊर्जा बहुत है इसलिये थकता नहीं। पत्रकार ने पूछा कि आप क्या खाते हैं? मोदी जी ने उत्तर दिया कि मैं विरोधी दलों की गालियां खाता हूं। यह बात उन्होंने विनोद में कही थी। उनका दूसरा उत्तर था कि वह देश के 1.30 अरब व्यक्तियों को अपना मानते हैं। इस कारण उनके लिये काम करने पर भी वह थकते नहीं हैं। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने भी ईश्वर, वेद, देश तथा समाज को अपना मान कर काम किया। उन्होंने अपने कष्टों की परवाह नहीं की। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द के 26 नवम्बर 1869 को काशी के 29 से अधिक पण्डितों से शास्त्रार्थ की चर्चा की। उन्होने कहा कि यह वर्ष इस शास्त्रार्थ का 150 वां वर्ष है। उन्होंने आगे कहा कि काशी पौराणिक आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र है। स्वामी जी ने सोचा कि यदि पौराणिकों के इस गढ़ पर चोट नहीं होगी तो वेद प्रचार का कार्य सफल नहीं होगा। उन्होंने बताया कि काशी का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह गुण्डा ही क्यों न हो, पौराणिक परम्पराओं की रक्षा के लिये तत्पर रहता था। ऋषि दयानन्द इस बात को जानते हैं फिर भी अपने प्राणों की चिन्ता किये बिना काशी के 29 से अधिक पण्डितों से शास्त्रार्थ करते हैं और उन्हें अपने ज्ञान व तर्कों से पराजित करते हैं।

आचार्य सन्दीप शास्त्री जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने पंचमहायज्ञों का विधान किया है। इन महायज्ञों को करने वाला व्यक्ति आर्य समाज के छठे नियम के साथ जी रहा है। इस बात को आचार्य जी ने उदाहरण देकर समझाया। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ करने से यज्ञ के निकट निवास करने वाले सभी व्यक्तियों को लाभ होता है। पंच महायज्ञ करने से आर्यसमाज के छठे नियम ‘संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है’ की पूर्ति होती है। आचार्य जी ने कहा कि हमें संकल्प लेकर चलना है। ऐसा करके ही हम आर्यसमाज का प्रचार कर पायेंगे। आचार्य जी ने कहा कि आर्यसमाज का प्रचार हम तब कर पायेंगे जब हम विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमताओं से युक्त होंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा होना सम्भव नहीं है कि हमें हर समय अनुकूलता ही मिले। अतः हमें अपनी कष्ट सहन करने की सामथ्र्य को बढ़ाना होगा। आचार्य जी ने आगे कहा कि वेद के अनुसार ईश्वर के पुत्र का नाम ‘आर्य’ है। उन्होंने कहा कि पुत्र रक्षा करने वाले को कहते हैं। हम ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए ईश्वर की रक्षा करते हैं। ईश्वर के बताये मार्ग पर चलकर हम धर्म की स्थापना व उसकी रक्षा करते हैं।

विद्वान आचार्य सन्दीप आर्य जी ने कहा कि हमें दूसरों की विचारधाराओं को परिवर्तित करने का प्रयास करना है। आज के समय में लोगों की जीवन पद्धतियां बदलती जा रही हैं। हमें प्रयास करना है कि हम वैदिक विचारधारा और वैदिक जीवन पद्धति को दूसरी विचारधारा के लोगों तक पहुंचायें। उन्होंने कहा कि हम अपने वैदिक साहित्य के प्रचार के माध्यम से लोगों प्रभावित कर सकते हैं। आचार्य जी ने मीडिया द्वारा प्रचार की महत्ता को भी स्वीकार किया। आचार्य जी ने युवाओं की चर्चा की और कहा कि हमें उन तक आर्य विचारधारा को पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिये। उन्होंने कहा कि यदि हम युवाओं को आर्यसमाज के विचारों को तर्क व युक्तियों से समझाने का प्रयत्न करेंगे तो वह उसे स्वीकार कर सकते हैं। आचार्य जी ने प्रसंगवश बताया कि कल वह व्हटशप देख रहे थे। एक गु्रप में उन्होंने आर्यसमाज धामावाला में दिये अपने प्रवचन को देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। आचार्य जी ने इस प्रयास की सराहना और प्रशंसा की। यह प्रयास इन पंक्तियों के लेखक ने किया था। आचार्य जी ने आगे कहा कि आर्यसमाज की नकारात्मक छवि को सुधारना है। हमें वेद के सकारात्मक विचारों को समाज के सम्मुख रखना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम युवाओं तक अपनी विचारधारा को प्रभावशाली रूप में पहुंचाने का प्रयास करें। हमारा लक्ष्य लोगों को अधिक से अधिक आर्य बनाने का होना चाहिये।

आचार्य सन्दीप आर्य ने कहा कि हमारे पास साधन है, सामथ्र्य है, शक्ति व ज्ञान-विज्ञान है तथा पूर्वजों का यश है। हमारे भीतर दृण इच्छा शक्ति का होना आवश्यक है। ऐसा करके हम आर्यसमाज के उद्देश्य के अनुसार आगे बढ़ सकते हैं। आचार्य जी ने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का भाव लेकर आगे चलने की पे्ररणा की। उन्होंने कहा कि वेद के इस सन्देश को लेकर हमें चलना है। आचार्य जी ने आर्यसमाज देहरादून की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यहां मोबाइल बन्द करने के लिये नहीं कहा गया परन्तु उनके प्रवचन के समय किसी के मोबाइल की घंटी नहीं बजी। आचार्य जी ने अपने व्याख्यान को विराम देते हुए कहा कि ऋषि के मिशन को आगे बढ़ाना हमारा दायित्व है। आर्यसमाज के मंत्री श्री सुधीर गुलाटी ने आचार्य जी के इस सम्बोधन की प्रशंसा की और उनका धन्यवाद किया। इसके बाद श्रीमती मिथलेश आर्या जी के भजन हुए। भजनों के बाद महात्मा चैतन्य स्वामी जी का सम्बोधन हुआ तथा उसके अनन्तर उन्होंने शंका समाधान किया। आर्य समाज के प्रधान डा0 महेश कुमार शर्मा जी ने वार्षिकोत्सव को सफल बनाने के लिये सभी विद्वानों व श्रोताओं का धन्यवाद दिया। आचार्य सन्दीप आर्य जी के प्रवचन के बाद का विवरण हम अगली किश्त में प्रस्तुत करेंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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