दिल में कोई बस गया, तो दूर रहत भी पास
गतांक से आगे….
संक्षेप में कहा जाए तो आदिकाल से आज तक संसार का जितना भी बहुमुखी विकास हुआ है यह उन अन्वेषकों, विचारकों, वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों और तत्ववेत्ताओं की ही महान देन है जिनके हृदय और मस्तिष्क में मानवता के लिए, प्राणीमात्र के कल्याणvijender-singh-arya के लिए सुंदर और सुकोमल भाव थे। विश्वविख्यात इमारतों को देखकर लोग हतप्रभ हो जाते हैं किंतु ध्यान रहे कि यह सुंदर सुकोमल विचार किसी वास्तुकार के हृदय में उठा था। दुनिया में जितने भी आविष्कार हुए हैं अथवा हो रहे हैं जिनसे संसार का कल्याण संभव है। इन सब में उनके खोजकर्ता की सुंदर सुकोमल भावना दृष्टिïगोचर होती है। ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति ही संसार के बाहरी सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं, नई राह दिखाते हैं।
पृथ्वी के बिना गंध ना,
अग्नि के बिना रूप।
जल के बिना रस नही,
सूरज के बिना धूप ।। 557 ।।

जल पै तेल खल है सलाह,
फेेले अपने आप।
शास्त्र ज्ञान गुणवान है,
बढ़ै दिनों दिन आप ।। 558 ।।

सत्संग और श्मशान में,
बुद्घि ज्यों निर्मल होय।
चला जाए बैकुण्ठ को,
पल्ला न पकड़ै कोय ।। 559 ।।

दान तपस्या वीरता,
यश धन और विद्वान।
ईश्वर की ये देन हंै,
मत करना अभिमान ।। 560 ।।

दिल में कोई बस गया,
तो दूर रहत भी पास।
गर दिल में उतरा नही,
तो पास रहा भी न पास ।। 561।।

दुष्टï के दिल में हो दगा,
करता मीठी बात।
बुद्घिमान तत्काल ही,
सावधान हो जात।। 562 ।।

मूर्ख सांप जल स्त्रियां,
अग्नि राजपरिवार।
इनसे दूरी ही उचित,
कब कर लेवें वार ।। 563 ।।

गुण और धर्म ही मनुष्य को,
करते कीर्तिमान ।
गुण और धर्म से रहित जो,
जीवन पशु समान ।। 564 ।।

वश कर रसना वासना,
जो चाहे कल्याण।
भाजन बनै विश्वास का,
विशेष मिले सम्मान ।। 565 ।।

यश और गरिमा विचारकै,
वाणी मधुर तू बोल।
ताकत देखकै क्रोध कर,
तेरा मोल बनै अनमोल ।। 566 ।।

कुल कमी निंदित वचन,
और अपना अपमान।
कभी नही प्रकट करे,
जग में बुद्घिमान ।। 567 ।।

कुल-कमी अर्थात अपने कुल के दोष निंदित वचन अर्थात चुगली।
कोकिला तब ही बोलती,
जब आवै ऋतुराज।
वक्त से पहले ज्ञानी जन,
करते नही आगाज।। 568 ।।

अन्न औषधि धर्म धन,
का संचय कर रोज।
इनके बिना ये जिंदगी,
बन जाती है बोझ ।। 569।।
क्रमश:

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