बम-बम भोले : राहुल बाबा

rahul gandhiराहुल गांधी को इस उम्र में भी क्या सूझी? केदारनाथ की यात्रा! यह उनके खेलने-खाने की उम्र है या केदार-बदरीनाथ जाने की? आज से 40—50 साल पहले जो भी इन तीर्थों पर जाता था, वह यह मानकर चलता था कि वहां से लौटे तो अच्छा और न लौट पाएं तो और भी अच्छा! क्यों और भी अच्छा? इसलिए कि वहां से वे सीधे स्वर्ग सिधारेंगे। लेकिन अब यह दूसरा विकल्प खत्म सा हो गया है, क्योंकि इन तीर्थों की यात्रा काफी सरल और सुरक्षित हो गई है। इन तीर्थों से सीधे स्वर्ग पहुंचने की बात भी कोरा अंधविश्वास ही है। ये तीर्थ तो स्वयं स्वर्ग है। साक्षात स्वर्ग की तरह सुंदर है। यदि राहुलजी इस सौन्दर्य पान के लिए केदार गए हैं तो सारा देश उनकी पीठ ठोकेगा, क्योंकि बेरहम कांग्रेसियों ने उन्हें एक दिन भी चैन नहीं लेने दिया। वे 56 दिन की साधना और मौन व्रत के बाद भारत लौटे तो उन्हें 19 अप्रैल की किसान रैली में झोंक दिया। उन्हें जो भाषण रटाया गया था उसकी ‘डिलवरी’ उन्होंने इतनी जोरदार की कि उनकी मजाक उड़ाने वाले भी देखते ही रह गए। लोग पूछते रहे कि कहीं राहुल भी नरेंद्र मोदी की तरह ‘टेलीप्राम्टर’ के अदृश्य पर्दे पर से अपना भाषण पढ़ते तो नहीं रहे।

शायद उन्हें पता नहीं है कि राहुलजी के लिए बोलना आसान है। पढ़ने में उन्हें मुश्किल हो सकती है। जो भी हो, दूसरे दिन राहुल ने संसद भी हिला दी लेकिन अफसोस है कि उनके हमउम्र गजेंद्र की मौत पर नेताओं की जो नौटंकी चल रही है, उसमें भाग लेने के लिए वे दिल्ली में उपस्थित नहीं हैं। वे दिल्ली में कैसे रहते? निर्भया की मौत के समय भी वे अन्तर्ध्यान हो गए थे। और अब तो स्वयं भगवान शिव का निमंत्रण था। वे मना कैसे करते?

मंदिर के गर्भ-गृह से लौटने पर उन्होंने कहा कि मुझे अपार शक्ति मिली। मुझे आग सी महसूस हुई। क्या खूब? कैसी आग, उन्होंने बताया नहीं। किसी तीर्थयात्री को क्या कभी आपने ऐसा कहते हुए सुना? भगवान शिव ने ये आग राहुलजी को इसलिए दी है कि वे पूरे देश को गर्म कर दें। भोलेनाथ ने अपने आशीर्वाद के लिए अब एक दूसरे भोलेनाथ को चुन लिया है। भोलेनाथ सारे देश में ‘बाबा’ के नाम से जाने जाते हैं। क्या अदभुत संयोग है कि राहुलजी को भी लोग राहुल बाबा कहते हैं। दोनों बाबाओं की कैसी चमत्कारी जोड़ी है! भोले बाबा-राहुल बाबा! बम-बम! भोले-भोले!

कुछ खास टीवी चैनल खुद बम-बम हो गए हैं। उनके पास बम-बम भोले को दिखाने के अलावा कुछ है ही नहीं। बेचारे कांग्रेसी मौन भाव से यह ‘अमृत—पान’ कर रहे हैं। उनका सेक्युलरिजम अंदर ही अंदर खदबदा रहा है। भगवा वस्त्रधारी साधु के हाथों तिलक लगवाकर हमारे भोले भंडारी राहुलजी क्या संघियों पर मोहिनी डालने की कोशिश कर रहे हैं? 56 दिन की साधना, पता नहीं, क्या—क्या रंग दिखाएगी?

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