गुजरात प्रशासन पर पुलिस भारी पड़ती है

मनीराम शर्मा

लंबा  शासन तो वाम ने भी प. बंगाल में मोदीजी से ज्यादा 25 साल तक  किया है | भाजपा और स्वयम कांग्रेस ने भी केंद्र और अन्य राज्यों में कर रखा है | गुजरात में लंबा शासन करना सुशासन का प्रमाण नहीं हो सकता और न ही  अविवाहित होना इस बात  का प्रमाण हो सकता कि  वह भ्रष्टाचार किसके लिए करेंगे | जय ललिता, ममता, मायावती भी तो अविवाहित हैं |  वैसे राजनेताओं को विवाह करने की कोई ज्यादा आवश्यकता भी नहीं रहती है | सांसदों के प्रोफाइल को देखने से ज्ञात होता है कि  अधिकाँश शादीसुदा सांसदों  ने  भी अपनी युवा अवस्था ( 35)  के बाद ही शादियाँ की हैं| जब जयललिता  को सजा सुनाई गयी  तो बड़ी संख्या में लोग मरने मारने  को उतारु हो गए थे,  तो क्या जन  समर्थन से  यह मान लिया जाए कि वह  पाक साफ़ है | ईमानदारी  का पता  तो कुर्सी छोड़ने पर ही लगेगा   क्योंकि जब तक सत्ता में हैं वास्तविक स्थिति दबी रहती है |

गुजरात में सम्प्रदाय विशेष के सैंकड़ों लोगों  को झूठे   मामलों में फंसाया गया है और  कुछ तो अक्षरधाम जैसे प्रकरण में अभी सुप्रीम कोर्ट से निर्दोष मानते हुए छूटकर गए हैं| कानून के अनुसार दोषी पाए जाने के लिए व्यक्ति का  तर्कसंगत संदेह से परे दोषी पाया जाना  आवश्यक है और निर्दोष और दोषी पाए जाने में  तो जमीन  आसमान का अंतर होता है| जिसे सुप्रीम कोर्ट निर्दोष मानता हो उसे कम  से  कम  निचले न्यायालयों द्वारा   संदेह  का लाभ तो दिया ही जाना  चाहिए था| इससे पता चलता है कि  राज्य की  न्यायपालिका  कितनी दबावमुक्त, स्वतंत्र और निष्पक्ष है | फर्जी मुठभेड़ के कई मामले भी चल रहे हैं यह पूरी दुनिया जानती है| मुख्य मंत्री होते हुए कानून बनाना मोदीजी का काम था जो उन्होंने  नहीं करके पुलिस को भेज दिया तो फिर क्या पुलिस कानून बनाएगी| समुद्र को पूरा पीने कि जरुरत नहीं होती , उसके स्वाद  का पता लगाने के लिए अंगुली भर चखना काफी होता है | मूर्ख होने के कारण ही यह जनता केजरीवाल को सिरमौर बना लेती है और 6 माह में उसे गालियाँ निकालती है और उसके बाद मोदी को जीता देती है| जो भी सत्ता में आता है वह मूर्खों की वजह से ही आता है  वरना कोई भी चुनाव ही नहीं जीत पाता| जिनके हाथ में नीता अम्बानी का हाथ और कंधे पर मुकेश अम्बानी का हाथ हो वे किस गरीब और कमजोर का भला कर सकते हैं -मैं तो यह समझने में असमर्थ हूँ | स्वयम सुप्रीम कोर्ट ने नडियाद प्रकरण में  कहा है कि   गुजरात प्रशासन पर पुलिस भारी पड़ती  हैं | कानून   बनाने का जो काम विधायिका को करना चाहिए वे पुलिस को सौंप दे तो या तो उन्हें ज्ञान नहीं या वे डरते हैं |दोनों ही  बातें देश का दुर्भाग्य हैं|

कॉमन वेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव संस्था ने सूचना   का अधिकार और पारदर्शिता की प्रभावशीलता पर गुजारत में सर्वेक्षण किया था  तो सामने आया कि  गुजरात की न्यायपालिका और अन्य सभी अंगों को इस कानून  से परहेज है | किसी न किसी  बहाने से सभी  अंगों ने रिकार्ड का निरिक्षण करवाने तक से इनकार  दिया था |मानवता को शर्मसार करने वाला सोनी सोरी काण्ड भी भाजपा के  शासन छत्तीसगढ़ में ही हुआ था |

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